Meri Sabse Lambi Chudai ki Kahani- Khub Chudi mai us rat ko

 
loading...

मेरा नाम शबाना इज़्ज़त शरीफ़ है। मैं शादीशुदा हूँ और उम्र तीस साल है। मैं बी-ए पास हूँ। खुदा ने मुझे बेपनाह हुस्न से नवाजा है। मेरा रंग दूध की तरह गोरा है, हल्की भूरी आँखें और तीखे नयन नक्श और मेरा फिगर ३६-सी की उभरी हुई चूचियाँ, २८ की मस्तानी कमर, और ३८ की मचलती हुई गाँड। मैं अक्सर बुऱका पहन कर ही बाहर जाती हूँ लेकिन मेरे बुऱके भी फैशनेबल और डिज़ाइनदार होते हैं। हमेशा रास्ते में चलते लोग मेरी मस्त जवानी को नंगी नज़रों से देखते और कुछ तो कमेन्ट भी कसते कि, “क्या माल है… साली बुऱके में भी होकर लंड को पागल कर रही है…. ऊँची सेंडिल में इसकी मस्त चाल तो देखो…!”

मेरे शौहर असलम इज़्ज़त शरीफ़ सरकारी महकमे में ऑफिसर हैं। हम एक अच्छी मिडल-क्लास कालोनी में तीन बेडरूम वाले किराये के मकान में रहते हैं। घर में आराम की तमाम चीज़ें हैं और मारूति वेगन-आर कार भी है। सरकारी नौकरी की वजह से मेरे शौहर की ऊपरी कमाई भी हो जाती है जिसके चलते मैं कपड़े-लत्ते, जूते और गहनों वगैरह पर खुल कर खर्च करती हूँ।

तीस की उम्र में वैसे तो मुझे दो -तीन बच्चों की अम्मी बन जाना चाहिये था। लेकिन ऐसा है नहीं और इसकी वजह है मेरे शौहर की नामर्दगी। मेरा शौहर “असलम इज़्ज़त शरीफ़” अपनी बच्चे जैसी लुल्ली से मेरी जिस्मानी ज़रूरतें पूरी नहीं कर पाता। इसके अलावा असलम को शाराब पीने की भी बहुत आदत है और अक्सर देर रात को नशे में चूर होकर घर आता है या फिर घर में ही शाम होते ही शराब की बोतल खोल कर बैठ जाता है। शुरू-शुरू में मैं बहुत कोशिश करती थी उसे तरह-तरह से चुदाई के लिये लुभाने की। मेरे जैसी हसीना की अदाओं और हुस्न के आगे तो मुर्दों के लण्ड भी खड़े हो जायें तो मेरे शौहर असलम का लण्ड भी आसानी से खड़ा तो हो जाता है पर चूत में घुसते ही दो-चार धक्कों में ही उसका पानी निकल जाता है और कईं बार तो चूत में घुसने से पहले ही तमाम हो जाता है। उसने हर तरह की देसी दवाइयाँ-चुर्ण और वयाग्रा भी इस्तेमाल किया पर कुछ फर्क़ नहीं पड़ा।

अब तो बस हर रोज़ मुझसे अपना लण्ड चुसवा कर ही उसकी तसल्ली हो जाती है और कभी-कभार उसका मन हो तो बस मेरे ऊपर चढ़ कर कुछ ही धक्कों में फारीग होकर और फिर करवट बदल कर खर्राटे मारने लगता है। मैंने भी हालात से समझौता कर लिया और असलम को लुभाने की ज्यादा कोशिश नहीं करती। कईं बार मुझसे रहा नहीं जाता और मैं बेबस होकर असलम को कभी चुदाई के लिये ज़ोर दे दूँ तो वो गाली-गलौज करने लगाता है और कईं बार तो मुझे पीट भी चुका है।

असलम मुझे भी अपने साथ शराब पीने के लिये ज़ोर देता था। पहले-पहले तो मुझे शराब पीना अच्छा नहीं लगता था लेकिन फिर धीरे-धीरे उसका साथ देते-देते मैं भी आदी हो गयी और अब तो मैं अक्सर शौक से एक-दो पैग पी लेती हूँ। चुदाई के लुत्फ़ से महरूम रहने की वजह से मैं बहुत ही प्यासी और बेचैन रहने लगी थी और फिर मेरे कदम बहकते ज्यादा देर नहीं लगी। अपनी बदचलनी और गैर-मर्दों के साथ नाजायज़ रिश्तों के ऐसे ही कुछ किस्से यहाँ बयान कर रही हूँ। इस कहानी का मूल शीर्षक “शबाना की चुदाई” है।

तीन साल पहले की बात है, तब मैं सत्ताइस साल की थी। हमारा मकान कालोनी के आखिरी गली में है में है जो आगे बंद है। हमारी गली में तीन चार ही मकान ही हैं और बाकी खाली प्लॉट हैं। इसलिये कोई आता जाता नहीं और अक्सर सुनसान सी रहती है। हमारे बाजू वाला घर खाली है जिसमें कोई नहीं रहता। हमारे सामने और दूसरी बाजू में भी खाली प्लॉट ही हैं। इसी बाजू वाले प्लॉट में एक छोटा सा कच्चा कमरा है जिसमें एक बीस-इक्कीस साल का लड़का रहता है और वहीं छप्पर के नीचे कालोनी के लोगों के कपड़े इस्तरी करता है। उसका नाम रमेश है और वो थोड़ा बदतमीज़ किस्म का है। वो अक्सर आते जाते वक्त मुझे छेड़ता रहता और गंदी-गंदी बातें करता। मैंने भी उसे कभी नहीं रोका और उसकी बातों के मज़े लेती रहती। इस वजह से उसकी भी हिम्मत बढ़ गयी थी।

एक दिन की बात है मेरी सहेली असमा ने मुझे नंगी फिल्म की सी-डी दी। वो देसी ब्लू-फिल्म की सी-डी थी। मैंने उस दिन पहली बार ब्लू-फिल्म देखी थी, और उसमें लम्बा मोटा अनकटा लण्ड देख कर मुझे अजीब सा लगा। मैंने अब तक अपने शौहर की कटी लुल्ली ही देखी थी। मेरी भी प्यास भड़क गयी थी और मैं भी अपनी चूत को उस जैसे किसी लण्ड से चुदवाना चाहती थी। खैर मैंने हमेशा की तरह केले से अपनी प्यास बुझायी पर मैं वो लंड भुला नहीं पायी। उसके बाद बुऱका पहन कर मैं कुछ खरीददारी करने बाहर गयी और शाम को घर आते वक्त जब अपनी गली में दाखिल होने लगी तो वहाँ रमेश बैठा था। हमारी गली की दूसरी तरफ़ रास्ता नहीं है, बंद गली है। रमेश पर जैसे ही मेरी नज़र पढ़ी, उसने मेरे हाथ में केलों के थैले की तरफ इशारा करते हुए पूछा कि ये खाने के लियी हो या कुछ और…? मैंने हल्के से मुस्कुराते हुए उसकी तरफ़ देखा। उफ़्फ़ अल्लाह क्या कहूँ, उसका दूसरा हाथ तो उसकी पैंट पर था और वो लंड को पैंट पर से सहला रहा था। मैं थोड़ा सा शरमा गयी लेकिन फिर हिम्मत करके हल्की सी मुस्कुराहट देकर आँख मार दी और घर पहुँच गयी।

जब मैं घर पहुँची तो मेरा शौहर दफ्तर से आ चुका था और टी-वी देखते हुए शराब पी रहा था। मैंने भी बुऱका उतार कर एक पैग बनाया और शौहर के साथ बैठ कर पीने लगी। चार-पाँच मिनट के बाद शौहर असलम शराब पीते-पीते ही मेरी कमीज़ के ऊपर से मेरे मम्मे दबाने लगा और फिर अपनी लुल्ली बाहर निकाल कर मेरा हाथ उसपे रख दिया। मैं भी एक हाथ से उसे सहलाने लगी तो लुल्ली अकड़ कर करीब चार इंच की हो गयी। फिर हमेशा की तरह उसने मुझे इशारे से उसे चूसने को कहा। मैंने अपना शराब का गिलास खाली किया और झुक कर उसकी लुल्ली अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। एक मिनट भी नहीं हुआ था कि उसकी लुल्ली ने अपना पानी मेरे मुँह में छोड़ दिया। शौहर असलम हाँफ रहा था लेकिन मैं शायद आज ज्यादा बेचैन थी। मुझे उम्मीद तो नहीं थी पर फिर भी मैंने शौहर की तरफ इल्तज़ा भरी नज़रों से देखा तो उसने मुझे झिड़क दिया। मैंने दिल ही दिल में उसे गाली दी और अपने लिये दूसरा पैग बना कर अंदर दूसरे कमरे में चली गयी। मैं खिड़की के पास बैठी शराब की चुस्कियाँ लेने लगी तो मुझे वो ब्लू फिल्म याद आ गयी। अजीब सा लंड था उस फिल्म में। अचानक मेरा ज़हन लंड की बनावट पर गया जो मेरे शौहर से बिल्कुल अलग थी। उफ़्फ़ ये तो अजीब सा लंड था फिल्म में, जिसपर चमड़ी थी। मेरी चूत बेहद गीली हो गयी थी।

अचानक मैंने खिड़की से झाँक कर देखा तो रमेश की मेरे घर पर ही नज़र थी। असल में ये खिड़की उसी प्लॉट की तरफ खुलती थी जिसमें रमेश का कमरा था। अपने शौहर से मायूस होकर अब मेरा भी दिल उसका लंड लेने को हो रहा था। मैंने कमरा बंद किया और खिड़की खोल ली और अपना पैग खत्म करके जानबूझ कर कुछ काम करने लगी। नीली कमीज़ और सफ़ेद रंग की सलवार और सफ़ेद रंग की ही ऊँची सैंडल पहनी हुई थी मैंने और ओढ़नी नहीं ली हुई थी। मेरे बूब्स काफी तने हुए थे। मैं जान कर ऐसे कर रही थी कि मेरे बूब्स का पूरा मज़ा मिले रमेश को। जब मैंने काम करते-करते उसकी तरफ़ देखा तो उसने अपना लंड निकाला हुआ था। उफ़्फ़ खुदा, क्या अजीब था उसका हिंदू लंड, बिल्कुल उस ब्लू-फिल्म के लण्ड जैसा, बिल्कुल काला, आठ इंच का और काफी झाँटें भी थी उसके इर्द गिर्द। जैसे ही मैंने देखा उसने हाथ से चोदने का इशारा किया। मैं हल्के से हंस दी और अपनी कमीज़ के हुक खोल कर उसे थोड़ा सा नीचे किया जिससे मेरे आधे बूब्स नज़र आ रहे थे। जैसे ही मैंने आधे मम्मों का नज़ारा दिया, रमेश ने अपना लंड पैंट में वापस डाला और मेरी खिड़की की तरफ़ आने लगा। मैंने इशारे से कहा कि रुको…! इस कहानी का मूल शीर्षक “शबाना की चुदाई” है।

मैंने कमरा खोला और बाहर जाकर देखा। मेरा शौहर सोफे पर नशे में धुत्त खर्राटे मार कर सो रहा था। मैंने हिम्मत के लिये एक और पैग जल्दी से पीया। मैं फिर कमरे में वापस आयी और उसे इशारे से कहा कि छत्त पर आओ…! वो पिछली दीवार से छत्त पर चढ़ गया। बाजू वाला मकान खाली होने की वजह से छत्त पर पुरी प्राइवसी है। मैंने कुछ कपड़े लिये और सुखाने के बहाने छत्त पर गयी और ऊपर जाकर सीढ़ियों का दरवाजा बंद किया। रमेश पहले से ही मौजूद था। वो अपना लंड निकाले हुए सहला रहा था। वो मेरी तरफ़ अपना हिंदू लंड ज़िप से बाहर निकाले हुए बढ़ा और मेरा एक मम्मा पकड़ कर मेरे होंठों से अपने होंठ चिपका दिये। उफ़्फ़ खुदा कितना अजीब लग रहा था मुझे। रमेश मेरा एक मम्मा ज़ोर से दबाते हुए अपने होंठों का थूक मेरे मुँह में डाल रहा था। उसका दूसरा हाथ मेरे जवान चूतड़ों को दबाने में लगा था और उसका नंगा हिंदू लंड मेरी बेचैन प्यासी चूत को सलवार पर से दबा रहा था। मैं भी जोश खाने लगी और अपने हाथ में उसका लंड पकड़ लिया। अजीब से लग रहा था कि उसका काला हिंदू लंड मेरे गोरे हाथों में फूल रहा था। फिर उसने मेरे चूतड़ और बूब्स दबाते हुए कहा, “शबाना जान! तुमने शराब पी रखी है क्या?” मैंने कहा, “हाँ थोड़ी सी पी है… कभी-कभार अपने पियक्कड़ शौहर के साथ पी लेती हूँ!”

रमेश मेरी आँखों में देखते हुए बोला, “तभी तेरी ये भूरी आँखें इतनी नशीली हैं! वैसे तू बुऱके में छिपी रुस्तम है!” उसकी बात सुनकर मुझे हंसी आ गयी। वो आगे बोला, “मैं तुम्हें बुऱके में देखना चाहता हूँ अभी!” उसने मेरे लाये हुए कपड़ों में बुऱका देख लिया था। मैंने शरमाते हुए कपड़ों में से बुऱका निकाला और पहनने लगी। मैंने जैसे ही बुऱका पहना उसने मेरा नकाब की तरफ इशारा करते हुए कहा, “ये भी डाल लो…!” मैंने शरारती अंदाज़ में कहा कि “क्यों रमेश! क्या इरादा है?” उसने बुऱके में से उभरे हुए मम्मे को पकड़ कर कहा की, “तू हमेशा बुऱके में ही दिखी है मुझे, बस तेरा हसीन चेहरा और ऊँची सैंडल में गोरे-गोरे नर्म पैर… मैंने हमेशा इसी रूप में तेरा तसव्वुर किया है और आज तेरी जवान मुस्लिम चूत को बुऱके में चोदुँगा!”

रमेश के मुँह से ये बात सुनकर मैं और जोश में आ गयी और नकाब डाल लिया। उसने एक कुर्सी ली और उस पर बैठ गया और बोला, “शबाना इज़्ज़त शरीफ! अब अच्छे से बैठ कर मेरे हिंदू लंड को अपने रसीले मुँह से चूसो!” मैं उसके सामने बैठ गयी और नकाब हटा कर उसके काले अनकटे लंड को अपने होंठों में ले लिया। अजीब मज़ा आ रहा था मुझे। मैं रमेश के लंड को अपने होंठों से चूस रही थी और मेरे दोनों मम्मे उसके घुटनों से दब रहे थे। उसने मेरा सर अपने लंड पर दबाया और उसका सारा हिंदू लंड मेरे मुँह में चला गया। मेरी नाक उसके लंड की झाँटों घुस गयी। रमेश मेरे गालों को सहलाने लगा। लंड चूसते हुए मैंने जब उसकी आँखों में देखा तो उसने शरारत से कहा, “क्यों मेरी शबाना इज़्ज़त शरीफ! कैसा लग रहा है मेरा हिंदू लंड तेरे रसीले मुँह में?” मैंने लंड चूसते हुए “हाँ” का इशारा किया। अब वो कुर्सी से उठा और खड़ा हो गया और मेरा सर पकड़ कर मेरे मुँह में चोदने लगा। मेरे होंठ काफी मुलायम और रसीले हैं। रमेश को बहुत मज़ा आ रहा था शायद। वो मेरे मुँह को ज़ोर-ज़ोर से चोदने लगा। फिर अपना काला लंड मेरे मुँह से बाहर निकाला और मुझे नीचे लिटा दिया। अब रमेश अपने कपड़े उतारने लगा और देखते ही देखते रमेश नंगा हो गया और उसका हिंदू लंड झाँटों से भरा मेरी तरफ़ देखते हुए इतरा रहा था।

अब वो नंगा होकर मुझे बुऱके पर से लिपटने लगा। नंगा काला हिंदू बदन मेरे शादीशुदा इज़्ज़त वाले बदन को बे-इज़्ज़त कर रहा था। रमेश ने दोनों हाथों से मेरे दोनों बूब्स पकड़ कर कहा, “साली तू तो मस्त माल है…! किसने बड़े किये इतने तेरे बूब्स?” मैंने थोड़ा शरमाते हुए कहा कि, “कौन करेगा! शौहर तो कुछ करता है नहीं तो खुद ही मसल-मसल कर बड़े किये हैं… शौहर के अलावा आज पहली बार किसी गैर मर्द ने छुआ है मुझे!” ये सुनते ही रमेश ने अपने लंड से मेरी चूत के ऊपर धक्का दिया और बोला, “आज अपनी मुस्लिम जवान शादीशुदा चूत में मेरा हिंदू अनकटा लंड लेगी शबाना?” मैंने भी शरारती होकर रमेश का हिंदू लंड अपने मेहंदी लगे हुए हाथ में पकड़ कर कहा, “रोज़ तो जब मैं गली से जाती थी तो सिर्फ बातें बनाता था… ये अपना हिंदू लंड दिखाता क्यों नहीं था मुझे?” रमेश ने मेरे बुऱके के ऊपर के दो बटन खोले और मेरी कमीज़ को नीचे करके मेरा एक गोरा मम्मा बाहर निकाला और बोला, “तू भी तो अपना ये मुस्लिम बूब छुपा कर बस नज़रों के तीर चला कर जाती है रोज़ मेरी शबाना रंडी!”

अब रमेश मेरे बाहर निकले एक नंगे मम्मे पर अपना लंड ले आया और अपने लंड से हल्के से मारते हुए मेरे मम्मे के निप्पल को अपने हिंदू लंड के सुपाड़े से छेड़ने लगा और शरारत भारी नज़रों से मुझे देखने लगा। मैं भी हल्के से मुस्कुराते हुए अपनी ज़ुबान होंठों पर फेरने लगी और उसके लंड की तरफ़ इशारा किया। वो अपना काला लंड मेरे होंठों के पास लाने लगा तो मैंने शरारत में उसके लंड पर थूक दिया। रमेश थोड़ा सा मुस्कुराया और वापस लंड मेरे मम्मे पर रख कर उस पर ठोकने लगा। अब मेरे मम्मे पर मेरा थूक और रमेश का थूक लगा हुआ था। मेरे बूब्स को रमेश हल्के से अपने लंड से मारता रहा और फिर दोबारा अपने लंड पर थूक कर मेरे मुँह के पास ले आया। मैंने बिना हिचकिचाये उसका लंड अपने होंठों में ले लिया और उसकी तरफ़ देख कर मज़े से चूसने लगी।

रमेश ने मस्त नज़रों से मुझे देखा और कहा, “साली छिनाल इतनी अदायें कहाँ से सीखी तूने? बुऱके में तो काफी शरीफ बनकर जाती है मेरी रंडी!” मैंने रमेश का लंड अपने मुँह से निकाला और कहा, “कितनी बार मैंने चाहा कि मैं तेरे इस हिंदू लंड से अपनी प्यासी मुस्लिम चूत को चुदवाऊँ मगर डर लगता था क्योंकि मैं शादीशुदा हूँ रमेश!” ये सुनकर रमेश ने मेरे बुऱके के सारे बटन खोल दिये और मेरी कमीज़ को और नीचे करके मेरे दोनों मुस्लिम मम्मे कमीज़ से आज़ाद कर दिये। मेरे बूब्स काफी उभरे हुए नज़र आ रहे थे। अब रमेश बारी-बारी से मेरे दोनों बूब्स के निप्पलों को चूस-चूस कर गीला कर रहा था और चूसते हुए मेरी तरफ़ देख कर बोला, “तेरे बूब्स पर मेरा थूक मेरी शबाना रंडी!” मेरा बुऱका खुला हुआ था। अब रमेश ने मेरी कमीज़ ऊपर करके मेरी सफ़ेद सलवार पर से मेरी चूत पर हाथ रख कर कहा, “शबाना इज़्ज़त शरीफ की चूत को आज क्या चाहिये?” मैंने रमेश की आँखों में देख कर कहा, “आज अपना हिंदू पानी मेरी शादीशुदा चूत में डाल कर मेरी चूत की प्यास बुझा दे रमेश!” इस कहानी का मूल शीर्षक “शबाना की चुदाई” है।

अब रमेश मेरी सलवार का नाड़ा अपने मुँह से खोलने लगा और मेरी सलवार को मेरी टाँगों और सैंडलों से नीचे खींच कर उतार दिया और मेरे गोरे बदन पर मेरी लाल रंग की छोटी सी पैंटी को देख कर बोला, “आह साली छिनाल! राँड तेरा फिगर तो बहुत मस्त है शबाना रंडी! इतने दिन बुऱके में छुपया क्यों तूने मेरी छिनाल!” मैंने रमेश का अनकटा हिंदू लंड पकड़ कर दबाते हुए कहा, “आज अपने इस हिंदू लंड से शबाना इज़्ज़त शरीफ की चूत को चोद कर मुझे राँड बना दे रमेश!” रमेश ने मेरी पैंटी पर से सहलना शुरू किया और गंदी नज़रों से मेरी तरफ़ देखने लगा। फिर आहिस्ता से मेरी पैंटी में रमेश का हाथ जाने लगा। मैं गौर से देखने लगी कि एक हिंदू का हाथ मेरी शादीशुदा प्यासी चूत पर जा रहा है। रमेश अब एक हाथ से मेरा एक मम्मा और दूसरा हाथ पैंटी में डाले हुए था और आहिस्ता-आहिस्ता मेरी प्यासी शादीशुदा चूत को अपने हाथों से सहलाने लगा। मैं रमेश की आँखों में देखने लगी। रमेश ने अपने लंड की तरफ़ इशारा किया और हल्के से बोला, “छिनाल शबाना!” मैंने रमेश का लंड अपने हाथ में ले लिया और उसे दबाने लगी और दूसरे हाथ से रमेश के गेंदों को सहलाने लगी। अब रमेश मेरी मुस्लिम चूत को सहलाने लगा और मेरे दोनों मम्मों को बारी बारी दबाते हुए मेरी प्यासी चूत को सहलाने लगा। मेरी चूत पर जैसे किसी ने अंगार रख दिया हो। रमेश का गरम हाथ मेरी मखमली चूत पर आग लगा रहा था।

मैं आधी नंगी, कमीज़ से बूब्स बाहर निकाले हुए थी और रमेश का लंड मेरे हाथों में था। रमेश मेरी इज़्ज़त से खेल रहा था और मैं उसके हिंदू लंड और गेंदों से खेल रही थी। अब मेरी चूत बेहद गीली हो गयी थी और रमेश के हाथों को गीलापन लगने लगा। उसने अपना गीला हाथ मेरी चूत से निकाला और मेरे बूब्स पर लगा दिया और कहने लगा, “अब मैं तेरी चूत को हिंदू लंड से चोद कर तेरी प्यास बुझाऊँगा मेरी शबाना इज़्ज़त शरीफ रंडी!” मेरा पूरा नाम जैसे मेरे जिस्म में आग लगा रहा था। मैंने भी जोश में आकर कहा, “आज मैं भी अपनी शरीफ शादीशुदा चूत को तेरे हिंदू लंड से चुदवा कर ही साँस लूँगी रमेश!” अब रमेश ने मेरी पैंटी पर से चूत को किस किया और अपने होंठों से पैंटी उतारने लगा। मैं रमेश की आँखों में देख रही थी और वो मुझे देखते हुए मेरी मुस्लिम चूत नंगी कर रहा था। मेरी चूत ऐसे नंगी हो रही थी जैसे मेरे चेहरे से नकाब उतर रही हो। जैसे ही मेरी चूत पैंटी से बाहर आयी रमेश ने कहा, “हाय राम! क्या मस्त है ये मुस्लिम चूत!” और मेरी पैंटी नीचे मेरे सैंडलों तक खिसका कर उतार दी और अपने होंठ पहले मेरे होंठों से लगाये और चूसते हुए बोला, “मेरी रंडी शबाना! तेरी चूत के होंठों को भी ऐसे ही चूसुँगा” और मेरे बूब्स के बीच से अपनी ज़ुबान चूत की तरफ़ ले जाने लगा।

मैंने अभी भी कमीज़ पहनी हुई थी मगर बूब्स बाहर थे। अब रमेश ने मेरी कमीज़ को ऊपर करके मेरा पेट भी नंगा कर दिया। मैंने कहा, “रमेश मेरी कमीज़ भी उतार दे।” लेकिन वो मेरी चूत की तरफ़ चला गया और मेरी चिकनी बिना बालों वाली चूत पर अपने हिंदू होंठों से चूमने लगा। अब मेरी चूत पर रमेश के होंठों की आग थी। मैं सिसकियाँ भरते हुए रमेश के सर को सहलाने लगी और प्यासी चूत पर रमेश का सर दबाने लगी। मेरी चूत पर रमेश थूकने लगा और ज़ोर-ज़ोर से चूत को चूसता जा रहा था। मैं नशे में उसका सर दबाते हुए बोली, “रमेश! आज चूस कर ही बच्चा पैदा करेगा क्या मेरे हिंदू राजा! अपने जवान काले लंड से भी तो चोद! अब बर्दाश्त नहीं होता!” रमेश ने मेरी मुस्लिम चूत से अपने होंठ हटाये और मेरे होंठों पर रख दिये। मैं रमेश के होंठों को ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगी। नीचे से रमेश का अनकटा हिंदू लंड मेरी चूत पर बार-बार लग कर दस्तक से रहा था। शायद उसका लंड कह रहा था कि अब रंडी बनने का वक्त आ गया। उसके लंड की झाँटें जब मेरी चूत को चुभती तो अजीब सा लगता।

अब रमेश ने मेरे बुऱके को उतार कर चादर बना दी और उस पर लिटा दिया और मेरी कमीज़ उतार कर मेरे जवान जिस्म को नंगा कर दिया। अब मैं रमेश के सामने बिल्कुल नंगी लेटी हुई थी। बस कलाइयों में चूड़ियाँ और पैरों में सफेद रंग के ऊँची हील वाले सेंडल थे। अब रमेश मेरी दोनों टाँगों के बीच अपना लंड सहलाता हुआ घुटनों के बल बैठ गया और मेरी तरफ़ देख कर बोला, “बनेगी मेरे हिंदू लंड की राँड मेरी शबाना?” रमेश का लंड देख कर मेरे मुँह में पानी आ रहा था। मेरी चूत तो जैसे खुल कर उसका लंड लेना चाहती थी। केले और मोमबत्तियों जैसी बेजान चीज़ें ले-ले कर असली लंड के लिये तरस गयी थी। मैंने अपनी दोनों टाँगें फैलाते हुए कहा, “आज हिंदू लंड से मेरी मुस्लिम चूत पर हमला बोल दे और मेरे गोरे जवान शादीशुदा जिस्म को अपने हिंदू बदन से फूल की तरह खिला दे!”

रमेश ने मेरा मेहंदी से भरा हाथ पकड़ा और उस पर किस करके मेरे हाथ में अपना आठ इंच का लंड दे दिया और बोला, “शबाना रंडी! तुझे ज्यादा तजुर्बा है तो तू ही राह दिखा!” और वो मेरे ऊपर आ गया। मैं रमेश का लंड अपने हाथ में लेकर अपनी शादीशुदा प्यासी मुस्लिम चूत जो हमेशा बुऱके में रहती थी उसका रास्ता बताने लगी। रमेश का लंड मेरे हाथ में फूल रहा था और चूत के इर्द गिर्द जैसे जगह ढूँढ रहा हो। अब मैंने अपनी चूत के दरवाजे पर रमेश का बालों से भरा अनकटा लंड जमाया और रमेश को देख कर कहा, “शबाना इज़्ज़त शरीफ की शादीशुदा मुस्लिम चूत के दरवाजे पर तेरे अनकटे हिंदू लंड का सुपाड़ा तैयार है रमेश!” रमेश मेरी आँखों में भूखे कुत्ते की तरह देखते हुए अपने लंड का सुपाड़ा मेरी शादीशुदा इज़्ज़तदार चूत में घुसेड़ने लगा। मैं भी उसकी आँखों में देखते हुए उसके हिंदू लंड के सुपाड़े को अंदर लेने की ख्वाहिश जता रही थी। रमेश का लंड थोड़ा- थोड़ा करके मेरी इज़्ज़त को चोद रहा था। मैं रमेश की पीठ पर अब अपने हाथ से उसके जिस्म को अपनी तरफ़ खींचने लगी। रमेश का आधा लंड मेरी गोरी मुस्लिम चूत में था और वो मेरी आँखों में मुसलसल देख रहा था और मैं उसके हिंदू लंड को अपनी चूत में लेते हुए अपने चेहरे से ज़ाहिर कर रही थी कि “और डाल अपना लंड और मेरी चूत के अतराफ़ अपनी झाँटें गड़ा दे।”

रमेश ने अपना लंड थोड़ा सा पीछे किया और मेरी आँख मिलाते हुए बोला, “छिनाऽऽल राँऽऽड आज मैं तेरी चूत का भोंसड़ा बना दुँगा!” मैं भी रमेश के लंड के जज़्बे भरे झटके का इंतज़ार करते हुए बोली, “बना दे भोंसड़ा मेरी चूत का रमेश! साली बहुत दिन से चुदासी है!” फिर मेरी आँखों में घूरते हुए रमेश ने एक ज़ोरदार झटका लगाया और मेरी चूत को चीरता हुआ मेरी चूत की आखिरी हद तक दाखिल हो गया और अपने हिंदू लंड की झाँटों से मेरी चूत को ढक दिया। मेरे मुँह से एक ज़ोर की हिचकी निकली और फिर चींखते हुए मेरे मुँह से निकला, “हाय अल्लाह! उफ़्फ़ रमेशऽऽऽऽ!” रमेश मेरी आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाते हुए चींखा, “साऽऽली राँऽऽड तेरी चूत में मेरा हिंदू लंडऽऽऽ!” रमेश के करारे झटके से मानो मेरा जिस्म उसके हिंदू लंड के नीचे पिसा जा रहा था। मैं उसके झटके से बेहाल थी। मुझे लगा कि जैसे मेरी सील हकीकत में आज ही टुटी थी क्योंकि आज तक मेरी चूत में इतनी हद तक इस तरह कोई लंड नहीं गया था। बस केले, बैंगन जैसी बेजान चीज़ें ही इस हद तक मेरी चूत में घुसी थीं।

मैंने अपने हाथ रमेश की पीठ से हटाये और रमेश के दोनों चूतड़ों को पकड़ कर कहा, “अभी कुछ देर ऐसे ही रहो मेरे हिंदू राजा!” अब हिंदू नंगा बदन मेरे जवान खूबसुरत नंगे बदन पर था। मेरे बड़े-बड़े गोल बूब्स रमेश के सीने से दब रहे थे। रमेश ने अपनी ज़ुबान निकाली और मेरे होंठों में दे दी। मैं रमेश का लंड अपनी चूत में लिये हुए उसकी ज़ुबान चूसने लगी और साथ ही साथ उसके चूतड़ दबाने लगी। रमेश अब थोड़ा सा ऊपर उठा तो मेरे बूब्स से उसका सीना थोड़ा सा अलग हुआ। उफ़्फ़ खुदा! मैं अब अपनी चूत में रमेश के लंड को घुसे हुए देख रही थी। तमाम लंड मेरी चूत में था और मैं ये देख कर हल्के से मुस्कुराने लगी। मैं अभी गौर से अपनी चूत में घुसे हुए काले लंड को देख ही रही थी कि रमेश ने शरारत से मेरी चूत पर अपने लंड का ज़ोर लगाया और मेरी चूत को दबाने लगा।

मैंने रमेश के चूतड़ दबाते हुए कहा, “क्यों जनाब! कैसी लगी मेरी चूत की आरामगाह तुम्हारे इस जवान हिंदू लंड को?” रमेश ने अपने लंड का ज़ोर कसा और कहा, “तेरी मस्त मुस्लिम चूत में मेरे हिंदू लंड की ही जगह है मेरी रंडी शहज़ादी!” और कहते हुए मेरी चूत से आधा लंड निकाला और फिर झटके से अंदर ठोक दिया। अब दूसरे झटके से मैंने बेखौफ होकर कहा, “तो अब इंतज़ार किस बात का है हिंदू लंड को… रास्ता तो बन ही चुका है… अब आना-जाना ज़ारी रखो मेरे राजा!” और मैं रमेश के चूतड़ों को दबाने लगी। रमेश अब मेरी टाइट चूत में अपना मोटा काला मूसल जैसा हिंदू लंड चोदने लगा और मेरी चूत के रसीले होंठों को खोल कर अपना लंड अंदर बाहर करने लगा। मैं मज़े से उसके लंड को खुशामदीद कहती हुई अपनी चूत के प्यासे होंठों से चूसने लगी। रमेश के मुसलसल झटके मेरी शादीशुदा चूत की इज़्ज़त की धज्जियाँ बिखेर रहे थे।

रमेश अब पूरे जोश में मेरे बूब्स चूसने लगा और लगातार अपने झटके लगाने लगा। मैं भी अपनी प्यासी चूत को उसके कड़क काले लंड के हवाले करके मज़े ले रही थी। मुझे बेतहाशा चोदते हुए उसके मुँह से गालियाँ निकालने लगी, “साली शबाना रंडी! ले मेरा लंड अपनी चूत में और ले साली छिनाऽऽल!” मैं भी चुदते हुए बोल रही थी, “आह चोद मेरी चूत को अपने मोटे लंड से रमेश! फाड़ डाल मेरी चूत को चोद मेरी जान, अपनी जवानी का सारा पानी मेरी प्यासी शादीशुदा चूत में डाल दे मेरे राजाऽऽऽ…!” मेरी बातों से रमेश का ज़ोर बढ़ता जा रहा था और वो मुझे एक बाज़ारू औरत की तरह चोद रहा था। मेरी चूत अब तक कम से कम चार बार पानी छोड़ चुकी थी और हर बार मेरा जिस्म ऐंठ कर सूखे पत्ते की तरह फड़फड़ा जाता।

फिर अचानक मुझे महसूस हुआ के कुछ अजीब सा मेरी चूत में कुछ हुआ है। हाय खुदा। ये तो रमेश के हिंदू लंड का पानी था। रमेश ने अपने होंठ मेरे मम्मों से हटाये और मेरी आँखों में देखने लगा और गुस्से भरे झटके देने लगा। मैंने भी उसकी आँखों में देख कर इकरार किया कि मैं भी यही चाहती थी कि उसके लंड का पानी मेरी प्यासी मुस्ल्म चूत में हो! मेरी चूत की प्यास मानो रमेश ने अपने हिंदू लंड के पानी से बुझा दी। मैंने अपनी दोनों टाँगें रमेश के चूतड़ पर कसकर उसका सारा पानी अपनी प्यासी चूत में ले लिया और रमेश अपना सीना मेरे बूब्स पर दबाता हुआ मेरे जिस्म से लिपट गया। हाय अल्लाह! मैं अजीब सा महसूस कर रही थी। अब रमेश का सारा पानी निकल चुका था और वो मेरे जिस्म के ऊपर ठंडा हो गया और मैं उसके चूतड़ों पर हल्के से हाथ फेर रही थी। ज़िंदगी में पहली दफा मुझे चुदाई का असली मज़ा मिला था।

रमेश ने कहा, “अब तेरी मुस्लिम चूत पूरी तरह से आज़ाद है शबाना इज़्ज़त शरीफ! आज मेरे लंड ने तेरी इज़्ज़तदार शादीशुदा चूत को चोद कर तुझे राँड बना दिया।” मैंने रमेश के चूतड़ों को शरारत से दबाया और कहा, “तुम्हारे लंड को मेरा सलाम मेरे हिंदू राजा! जिसने मेरी इज़्ज़त को अपने हिंदू जज़्बे से चोद कर मुझे मज़े दिये!”

अब रमेश उठा और मेरी चूत से लंड निकाला। मैंने रमेश का लंड अपने नकाब से साफ़ किया और रमेश के अनकटे काले लंड के अपने होंठों से किस किया। रमेश मेरी जिस्म को देखता हुआ कपड़े पहनने लगा और मैं भी कपड़े पहनने लगी। दोनों ने कपड़े पहने और रमेश ने मेरे बुऱके का नकाब उठाया और बोला, “ये निशानी है मेरे पास कि तूने मेरा लंड चूसा है!” और अपनी जेब में रख लिया। अचानक मुझे लगा कि मेरे शौहर ने मुझे पुकारा! मैंने जल्दी से रमेश को कहा कि “अब मुझे इजाज़त दो” और मैंने झुक कर रमेश को सलाम किया। रमेश ने मेरा सर थोड़ा सा झुका कर अपनी पैंट पर ले गया। मैंने उसकी पैंट पर से उसके लंड को किस किया और फिर रमेश ने मेरा एक बूब और चूतड़ पकड़ कर मुझे किस किया और जाते हुए बोला, “अपनी चूत का खयाल रखना!” मैंने भी अपनी कमीज़ उठा कर सलवार के ऊपर से चूत पर हाथ रखा और कहा, “तेरी अमानत है रमेश! जैसे चाहे इस्तेमाल कर मेरे हिंदू चुदक्कड़!” जाते-जाते रमेश ने हाथों से चुदाई का इशारा किया और मैं हंसते हुए सीढ़ियों का दरवाजा खोल कर नीचे चली गयी। मेरा शौहर असलम अभी भी नशे में धुत्त सोफे पर पड़ा खर्राटे मार रहा था। इस कहानी का मूल शीर्षक “शबाना की चुदाई” है।

उस दिन के बाद तो मैं रमेश के हिंदू अनकटे लण्ड से अक्सर चुदवाने लगी। उसकी रखैल जैसी बन गयी थी मैं। वो भी मुझे शराब पिला-पिला कर बाज़ारू राँड की तरह चोदता था। मैं उसके लण्ड की इस कदर दीवानी हो गयी थी की अपनी पाकिज़ा गाँड भी उसे सौंप दी। दिन में जब मेरा शौहर दफ़्तर में होता तो रमेश मेरे बिस्तर में मुझे चोद रहा होता था। कईं बार तो असलम घर में नशे में चूर सो रहा होता था और मैं छत्त पर पानी की टंकी के पीछे रमेश का अनकटा लण्ड चूत में ले कर मज़े लूटती। असलम को इस बात की कभी शक नहीं हुआ कि उसकी नाक के नीचे ही मैं दिन-रात एक हिंदू गैर-मर्द के साथ अपनी चूत और गाँड मरवा कर इज़्ज़त निलाम कर रही हूँ।

रमेश के अनकटे लण्ड से अपनी चूत चुदवाते हुए दो साल निकल गये। एक दिन शौहर असलम इज़्ज़त शरीफ के साथ मैं कुछ खरीददारी करने गयी। वैसे तो हम कभी-कभार ही साथ में बाहर जाते थे लेकिन उस दिन असलम मियाँ को रिश्वत में कहीं से मोटी रकम मिली थी और वो काफी खूश और खर्चा करने के मूड में थे। मैंने भी पूरा फायदा उठाया और अपने लिये खूब खरीददारी की और शौहर असलम शरीफ ने भी कोई आनाकानी नहीं की। आखिर में मेरे लिये सेन्डल खरीदने हम लेडीज़ जूतों के शो-रूम में पहुँचे। वहाँ दुकान का मालिक और एक असिसटेंट मौजूद था।

मेरे शौहर तो हमेशा की तरह दुकान के काऊँटर के पास ही सोफे पर बैठ गये क्योंकि उन्हें तो मेरे कपड़े-लत्ते सैंडल वगैरह पसंद करने में कोई दिल्चस्पी थी ही नहीं। दुकान का असिसटेंट सैंडलों के डब्बे निकाल- निकाल कर लाने लगा और दुकान का मालिक मेरे पैरों में बहुत ही इत्मिनान से नये-नये सैंडल पहना कर दिखाने लगा। मैंने बुऱका पहना हुआ था और हमेशा की तरह नकाब हटा रखी थी। दुकान का मालिक बुऱके में से ही मेरे उभरे हुए ३६-सी के मम्मे और ३८ की गाँड को लुच्ची नज़रों से घूर रहा था और सैंडल पहनाते हुए मेरे गोरे-नर्म पैर सहला रहा था। मुझे भी उसकी इस हरकत से मज़ा आ रहा था और मेरी चुप्पी से उसकी हिम्मत और बढ़ गयी। वो बहुत ही प्यार से मेरे पैरों में सैंडल पहनाते हुए पैरों से ऊपर मेरी टाँगों को भी छूने लगा। बीच-बीच में सेल्ज़मन्शिप के बहाने मेरी तारीफ भी कर देता, “ये वाली सैंडल में तो आप करीना-कपूर लगेंगी… ये पाँच इंच की पेंसिल हील के सैंडल तो आपके खूबसूरत पैरों में कितने जंच रहे हैं…!” मैं एक जोड़ी सैंडल खरीदने आयी थी और अब तक दो जोड़ी पसंद करके अलग रखवा चुकी थी।

दुकान के मालिक की पैंट में से उसके लण्ड का उभार मुझे नज़र आने लगा था। उसकी हरकतों और बातों से मेरी चूत भी रिसने लगी थी। रमेश के लंड से चुदवाते-चुदवाते मैं भी ठरकी और बे-शर्म हो गयी थी लेकिन शौहर की मौजूदगी का भी एहसास था। इसी बीच में दुकान के मालिक ने एक सैंडल पहनाते हुए मेरा पैर अपने लंड के उभार पर रख दिया तो मैंने भी शरारत से सैंडल उसके लंड पर दबा दी। उसने सिर उठा कर मेरी तरफ देखा तो मैं धीरे से मुस्कुरा दी। आखिर में मैंने चार जोड़ी ऊँची हील वाली सैंडलें पसंद किये और दुकान मालिक के साथ बाहर काऊँटर पर आ गयी।

“बेगम ले ली आपने सैंडल!” शौहर का मिजाज़ कुछ उखड़ा हुआ सा लग रहा था पर मैंने ज्यादा त्वज्जो नहीं दी और दुकान के मालिक के हाथों में मौजूद डब्बों की तरफ इशारा करते हुए कहा, “हाँ… मुझे पसंद आ गयीं तो चार जोड़ी ले लीं!” शौहर ने दुकन मालिक से पूछा, “कितने पैसे हुए?” तो दुकान मालिक ने बताया “नौ हज़ार तीन सौ पचास! बहुत ही हाई-क्लास पसंद है मोहतरमा की!” मेरे शौहर ने पैसे निकाल कर उसे दिये और इतने में मेरा मोबाइल फोन बजने लगा तो मैं अपनी सहेली असमा से बात करने लगी। इतने में मुझे एहसास हुआ कि मेरे शौहर और दुकान मालिक में झगड़ा शुरू हो गया है। मैंने जल्दी से मोबाइल बंद किया और शौहर को समझाते हुए बोली कि, “महंगे हैं तो एक जोड़ी कम कर देती हूँ!”

लेकिन वो झगड़ा पैसे का नहीं बल्कि इस बात का था कि मेरे शौहर ने दुकान मालिक को मेरे बुऱके में से मेरे जिस्म को मज़े लेकर घुरते हुए देख लिया था। मेरे शौहर असलम शरीफ चिल्लाते हुए दुकान मालिक को औरतों के साथ तमीज़ से पेश आने की बात कह रहे थे। अब दुकान मालिक काऊँटर छोड़ कर बाहर आ गया और दोनों एक दूसरे को धक्का देने लगे लेकिन वो दुकानदार काफी तगड़ा था। उसने शौहर असलम को इतनी ज़ोर से धक्का दिया के वो ज़मीन पर गिर गये।

वो दुकानदार फिर से शौहर को मारने के लिये आगे बढ़ा पर मैं बीच में आ गयी और वो मेरे जिस्म से टकरा गया। मेरे बीच में होने की वजह से मेरे बुऱके में उभरी हुई गोल मखमली चूचियाँ उस दुकानदार से कईं बार टकरा कर दब गयीं। फिर मैंने मिन्नतें की तब जाकर दुकानदार ने कहा, “ले जाओ मोहतरमा इस साले को वरना इसकी गाँड पर इतना मारुँगा कि साला फिर पतलून कभी नहीं पहन सकेगा।”

शौहर असलम को गुस्सा करते हुए मैं बाहर ले जाने लगी। जैसे ही दरवाजे से उनको बाहर किया और मैं भी सैंडलों की थैलियाँ ले कर बाहर जाने वाली थी कि दुकानदार ने ज़ोर से मेरे चूतड़ों को दबा दिया। “ऊँह अल्लाहऽऽ!” मेरे मुँह से निकला और मैं बाहर आ गयी और भूरी नशीली आँखों से पलट कर दुकानदार को देखकर शरारत से मुस्कुरा दी। फिर शौहर को लेकर घरगर आ गयी। इस कहानी का मूल शीर्षक “शबाना की चुदाई” है।

इस वाक्ये के बाद दो हफ़्ते गुज़रे थे कि एक दिन सुबह-सुबह मैं नहाने के बाद गीले कपड़े सुखाने छत्त पर गयी। अचानक मेरी नज़र अपनी बगल वाले मकान की छत्त पर पढ़ी। अरे ये क्या! इस मकान में तो दो-तीन सालों से कोई नहीं रहता था। अब ये कौन एक मर्द जिस्म पर धागा बाँधे और सिर्फ़ धोती पहने मेरी तरफ़ पीठ किये हुए सूर्य नमस्कार कर रहा है। मैं कुछ देर खड़े होकर कपड़े सुखाते हुए उसे देखने लगी लेकिन जब वो मेरी तरफ़ पलटा तो हैरत की कोइ इंतेहा नहीं थी। ये तो वही दुकानदार था जिसके साथ मेरे शौहर असलम ने झगड़ा किया था और इसने मेरे चूतड़ों को कितनी बेरहमी से दबाया था। मुझे देखकर वो मेरी तरफ़ बढ़ा तो मैं घबरा कर जल्दी से नीचे आ गयी। उधर देखा कि शौहर असलम सो रहे हैं। मैं परेशान थी कि शायद फिर ये कमबख्त शौहर उस दुकानदार से झगड़ा न शुरू कर दे। दूसरी परेशानी ये थी कि अब मुझे छत्त पर रमेश के साथ चुदाई के वक्त एहतियात बरतनी पड़ेगी। दोनों छत्तें सटी हुई थीं और इतने सालों से वो मकान खाली होने की वजह से पुरी प्राइवसी थी और हम बे-खौफ होकर रात को छत्त पर चुदाई करते थे।

दोपहर को मैं शौहर असलम के साथ बुऱका पहने बाहर निकली कि बाजू के मकान से वो दुकानदार भी बाहर निकला और असलम ने उसे देखते ही नज़र फेर ली। मैंने सोचा चलो बला टली कि दोनों ने झगड़ा नहीं किया। वो हिंदू भी अपनी हीरो होंडा हंक बाइक स्टार्ट करके जाने लगा लेकिन जाते-जाते उस हिंदू मर्द ने मेरी तरफ़ देख कर मुँह से किस किया और हंसता हुआ चला गया। उफ़्फ़्फ़ अल्लाह! अब ये क्या! मेरे जिस्म में मिठी सी सिहरन दौड़ गयी और मैं मन ही मन मुस्कुराने लगी।

अगले कुछ दिनों में मैंने देखा कि वो हिंदू मर्द बाजू वाले मकान में अकेला ही रहता है और सुबह जल्दी निकल जाता है और फिर रात को ही वापस आता है। मैंने रमेश को कुछ नहीं बताया और हमारी ऐय्याशी बिना किसी दिक्कत के वैसे ही ज़ारी रही। कुछ दिनों में ईद आ गयी। सुबह-सुबह मैं नहा कर कपड़े सुखाने ऊपर गयी ताकि जल्दी से काम हो जाये और मैं जल्दी से शीर-खोरमा और खाना वगैरह बना लूँ। जैसे ही मैं ऊपर गयी तो बाजू वाली छत्त पर वो हिंदू मर्द मेरी तरफ़ पीठ किये हुए मौजूद था। मुझे लगा कि शायद सूर्य-नमस्कार कर रहा होगा। मुझे जल्दी थी लेकिन फिर भी जाने क्यों मैंने जल्दी नहीं की और उसे देखते हुए आहिस्ता-आहिस्ता कपड़े सुखाने लगी। कुछ लम्हों बाद जब वो पलटा जो मेरी छिनाल मुस्लिम चूत के तो होश उढ़ गये।

वो सूर्य-नमस्कार नहीं बल्कि मेरा ही इंतज़ार कर रहा था। हाथ में एक सैंडल का डब्बा था और धोती से अनकटा हिंदू लंड बाहर निकल कर अकड़ कर खड़ा था। वो खड़े नंगे लंड को लेकर दोनों छत्तों के दर्मियान दीवार के पास आया और मुस्कुराते हुए बोला, “ईद मुबारक! और ये आपके लिये तोहफा… उम्मीद है आपको पसंद आयेंगे!” और वो सैंडल का डब्बा मेरी तरफ बढा दिया। मेरी मुस्लिम भूखी चूत जो शौहर के नकारा छोटे लंड से मायूस और रमेश के हिंदू लण्ड के चुद-चुद कर छिनाल बन गयी थी, अब इस दूसरे हिंदू के खड़े अनकटे बड़े लंड को देख कर जोश खाने लगी। इसके लण्ड की बनावट रमेश के काले अनकटे लण्ड जैसी ही थी लेकिन ये अनकटा लण्ड तो उससे भी मोटा और बड़ा था और काफी गोरा था। मैंने शर्मीले अंदाज़ में उसके लंड को एक बार हसरत से देख कर अपनी नज़रें नीचे कर लीं और उसके हाथ से सैंडल का डब्बा लेते हुए बोली, “शुक्रिया! आपको भी बहुत-बहुत ईद मुबारक!”

उसने लंड को पकड़ कर कहा, “आज दूध का शीर-खोरमा नहीं पिलाओगी मुझे?” मैंने शरारती अंदाज़ में ताना मारते हुए कहा, “आप मेहमान बन कर आओ… फिर पिला दुँगी, बहुत गुस्ताख़ और मग़रूर हैं आप और आपका खड़ा हुआ ये मूसल जैसा मोटा… हाय अल्लाह!” मैं इतना बोल कर हंसते हुए नीचे भाग गयी। मैं नीचे आयी तो शौहर नहाकर तैयार हो रहा था। “बेगम शबाना! जल्दी से टोपी वगैरह दे दो नमाज़ अदा करके आता हूँ!”

मैंने टोपी दी, वो बाहर चला गया और उसके जाते ही मैं ऊपर भाग कर गयी लेकिन वो हिंदू ऊपर नहीं था। फिर मैं नीचे आ गयी और उसके दिये सैंडलों का डब्बा खोल कर देखा। उसमें लाल रंग के ऊँची पेन्सिल हील के बहुत ही खूबसूरत और कीमती सैंडल थे। मैंने वो सैंडल बाहर निकाल कर पहन कर देखे तो बिल्कुल मेरे नाप के थे लेकिन तभी मुझे अपने पैरों में कुछ गीलेपन का एहसास हुआ। मैंने सैंडल उतार कर छू कर देखा तो खुशबू और चिपचिपाहट से पल भर में समझ गयी कि ये उस हिंदू के लण्ड का पानी है। मैंने मुस्कुराते हुए फिर से वो सैंडल पहन लिये और घर के काम में लग गयी। मेरी चूत तो बुरी तरह चुनमुनाने लगी थी।

अल्लाह ने जैसे मेरे मन की बात सुन ली और इतने में रमेश ने घंटी बजायी। “अभी तेरे निखट्टू शौहर को बाहर जाते देखा तो सोचा तुझे और तेरी चूत और गाँड को ईद मुबारक दे दूँ!” कहते हुए उसने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये। “शुक्रिया मेरे राजा! मेरी चूत भी तेरे लंड को ईद मुबारक देने के लिये बेकरार हो रही थी!” मैंने उसकी पैंट के ऊपर से उसका लण्ड सहलाते हुए कहा। “बस चूत ही बेकरार है और गाँड मेरे लण्ड से गले नहीं लगेगी?” वो मेरे चूतड़ों पर मारते हुए बोला। “रमेश! आज बहुत काम है और शौहर असलम भी नमाज़ अदा करके जल्दी आने वाला है! इस वक्त तो तू सोच ले कि तेरे लण्ड को मेरी चूत से गले मिलना है या गाँड से! वो भी ज़रा जल्दी-जल्दी…” कहते हुए मैंने उसकी पैंट के बटन खोल दिये।

“चलो अभी तो चूत और लण्ड की ही ईद मिलनी कर लेते हैं।” वो बोला और मेरी कमीज़ उतारने लगा। एक दूसरे को चूमते हुए हम दोनों नंगे हो गये। मैंने इस वक्त भी उस दुकानदार से तोहफे में मिले वो लाल सैंडल पहन हुए थे और मेरे पैरों में उसके लण्ड के पानी का गीला और चिपचिपा एहसास मौजूद था। रमेश ने मुझे वहीं ज़मीन पर लिटा दिया और मेरी चूत में अपना काला अनकटा लण्ड पेल कर दनादन चोदने लगा। करीब पंद्रह बीस मिनट तक उसने मुझे खूब चोदा और मेरी चूत ने कईं बार पानी छोड़ा। फिर उसने भी मेरी चूत को अपने लण्ड का शीर-खोरमा पिला दिया।

मैंने उसे जल्दी से रुखसत किया और अपने कपड़े पहन कर रसोई में काम निपटने लगी। मैंने शीर-खोरमा और खाना वैगैर बना लिया और फिर एक बार नहा कर लाल रंग का नया सलवार-कमीज़ पहन लिया और साथ में वही तोहफे में मिले लाल ऊँची हील के सैंडल पहन लिये। कुछ देर बाद असलम की आवाज़ बाहर से आने लगी। शायद किसी से बात कर रहे थे। मैं बाहर गयी और दरवाजा खोल कर देखा तो ये क्या? वो हिंदू दुकानदार मेरे शौहर असलम से बात कर रहा था।

दोनों हंसकर बातें कर रहे थे। मुझे समझ नहीं आया कि ये क्या माजरा है। शौहर की पीठ मेरी तरफ़ थी। मैं पीछे से जैसे ही आयी तो शौहर ने कहा, “बेगम देखो! मैंने और बलराम ने पहले की बातों को भुला दिया है। आज ईद के दिन हमारा झगड़ा खतम!” वो भी शरारती अंदाज़ में आगे बढ़ा और शौहर असलम से बोला, “अब तो गले मिल लो असलम साहब!” और गले मिलते ही उसने मुझे देख कर आँख मारी और अपना हाथ आगे बढ़ा कर मेरी मुस्लिम चूची को नीचे से हल्के से मार कर उछाला और इशारे से उसने आँखें मटकायीं।

मैं समझ गयी कि जो ताना मैंने मारा था ये उसका जवाब है। उफ़्फ़ हिंदू मर्दाना! फिर उसने आँखों से ही मेरे पैरों में उसके लाये सैंडलों की तरफ इशारा किया और आँख मार दी। मैं हंसते हुए उसे देख कर अंदर चली गयी। दोनों अंदर आये और वो भी आकर बैठ गया। “बेगम शबाना बलराम और हमारे लिये शीर-खोरमा लाओ भाई!” शौहर ने हुक्म सुनाया। मैंने भी ओढ़नी सर पर डाली लेकिन उभरे हुए एक मम्मे का नज़ारा खुला रहने दिया।

शीर-खोरमा मैंने पहले शौहर को डाल कर दिया फिर बलराम को शीर-खोरमा डालते हुए चोर नज़र वाले अंदाज़ में मैंने उसे देखा। उसने मेरी झुकी हुई चूची को देखा और अपनी ज़ुबान शरारत से बाहर निकाल दी। मैंने भी दाँतों में अपने होंठ दबाये और उसे अपना शरारती गुस्सा दिखाया। वो थोड़ा हंसा और शौहर की तरफ़ देख कर बोला, “क्या असल्म साहब! आप तो शीर-खोरमा पीने में मसरूफ हो गये, वैसे आपके यहाँ का ये दूधवाला शीर-खोरमा तो राम कसम बहुत मज़ेदार है!” मैं किचन में जाकर पर्दे के पीछे से थोड़ा पर्दा हटाकर शौहर असलम के पीछे से झाँक कर बलराम को देखने लगी। “हाँ जनाब! हमारे यहाँ तो ईद का शीर-खोरमा माशा अल्लाह बहुत मशहूर है!” “हाँ हाँ असलम साहब!” बलराम ने बात मिलाते हुए कहा, “सच कहा आपने! ईद के दिन मुस्लिम घरों में ताज़े दूध को कढ़ा कर उसमें सेंवई और उस पर लाल रंग की स्ट्राबरी सजाकर पेश करते हैं!” और फिर मेरी तरफ़ देख हंस दिया। असलम ने बात काट कर कहा, “अरे जनाब! वो स्ट्राबरी नहीं… वो तो खजूर होता है काला वाला!” बलराम ने असलम के ऊपर मन ही मन में हंसते हुए कहा, “हाँ हाँ वही!” फिर असलम ने कहा कि “चलो खुदा ने आपको हिदायत दी के आप और हम आज ईद के दिन मिल जायें!” बलराम बोला, “सच कहा आपने! मैंने आज सुबह-सुबह ईद का चाँद देखा और फिर मैंने फैसला किया कि आज झगड़ा खतम और देखिये मैं आ गया आपके घर का ये मज़ेदार दूधवाला शीर-खोरमा पीने के लिये असलम साहब!” मैं भी अपने ही आप दिल में हंस रही थी। वो कुछ देर बैठा और चला गया। इस कहानी का मूल शीर्षक “शबाना की चुदाई” है।

फिर कुछ देर बाद कईं लोग ईद मिलने आये और दोपहर के बाद तक घर काफी बिज़ी रहा। जब सब जा चुके तो, असलम गले मिलते मिलते थक चुका था। अब वो बेडरूम में जाकर बोतल खोलकर बैठ गया और मुझे भी बुला लिया, “आओ बेगम शबाना! दो-दो जाम हो जायें इस मुबरक मौके पर!” मैंने देखा कि आज कोई बहुत ही महंगी इंपोर्टेड शराब की बोतल थी जो शायद उसे किसी ने रिश्वत में दी थी। अगले आधे घंटे में मैंने भी दो पैग पी गयी। वाकय में बेहद उमदा शराब थी। शौहर असलम भी इतने में चार-पाँच पैग गटक चुका था। फिर हमेशा की तरह मेरी हसरतों की ज़रा भी परवाह किये बगैर मेरे खुदगर्ज़ नामर्द शौहर ने मुझे अपना लण्ड चूसने का हुक्म दिया। मैंने भी फ़र्ज़ी तौर पर उसका लण्ड चूस कर उसका पानी पिया। फिर मैंने अपने लिये तीसरा पैग ग्लास में डाल लिया और पीने लगी। आमतौर पर मैं दो पैग से ज्यादा नहीं लेती पर शराब माशा अल्लाह बेहद उमदा थी और बलराम के बारे में सोचते-सोचते मैं चौथा पैग भी पी गयी। पहले तो हल्का सा ही सुरूर था पर फिर अचानक तेज़ नशा महसूस होने लगा और मैं हवा में उड़ने लगी। शौहर असलम के भी कुछ ही देर में टुन्न होकर खर्राटे भरने शुरू हो गये।

मैं आज बहुत हसीन लग रही थी। हाथों में मेहंदी, लाल रंग का कीमती सलवार सूट, लाल रंग के ही पैरों में ऊँची पेंसिल हील के खूबसूरत सैंडल और मेरी हसीन मुस्लिम नशीली अदायें! बलराम की आज की हरकत ने मेरी मुस्लिम चूत को पहले ही बहुत जोश दे रखा था। अब शराब के नशे में तो मेरी आँखों के सामने उसका अनकटा गोरा हलब्बी हिंदू लण्ड नाचने लगा और मेरी चूत में चिंगारियाँ उठने लगीं। नशे में झूमती हुई मैं उठी तो चलते हुए ऊँची हील की सैंडल में मेरे कदम लड़खड़ा रहे थे पर मुझे तो कोई होश या परवाह नहीं थी। मैं नशे में झूमती लड़खड़ाती हुई सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर जाने लगी इस उम्मीद में कि शायद बलराम से छत्त पर मुलाकात हो जाये। लेकिन हाय अल्लाह ये क्या! वो तो पहले से ही मेरे घर की ऊपर वाली सीढ़ियों पर बैठा हुआ था। मैंने नशे में बहकी आवाज़ में कहा, “जनाब पहले से मौजूद हैं! बड़े बेकरार लग रहे हो?” और खिलखिला कर हंस पड़ी।

“मोहतरमा भी खूब नशे में बदमस्त हैं! लगता है शराब की पुरी बोतल ही खाली करके आ रही हैं!” बलराम ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे ज़ोर से अपनी तरफ़ खींचा तो मैं बलखा कर बलराम की हिंदू गोदी में जा गिरी। उफ़्फ़! बलराम की हिंदू साँसें मेरे मुस्लिम कानों में थीं। मैं बहकी आवाज़ में गाना गुनगुनाने लगी, “थोड़ी सी जो पी ली है… चोरी तो नहीं की है!” फिर मैंने इठलाते हुए नशीली आँखों से बलराम की आँखों में देखा और नशे में फिर हंसने लगी। “शराब से भी ज्यादा तो नशा तो तुम्हारे उस नज़राने ने किया है जो तुमने इन सैंडलों में छिपा कर दिया था! अब तक उसकी मस्त खुशबू मेरे ज़हन में महक रही है!” मैं फिर हंसते हुए बोली। “मैं तो उस दिन दुकान में ही समझ गया था कि तू एक नंबर की मुसल्ली राँड है!” उसने कहा और कमीज़ के ऊपर से मेरा एक मम्मा मसल दिया!

“बेहद पाज़ी हो तुम! वैसे सैंडल हैं बेहद खूबसूरत… हैं भी बहुत कीमती!” मैंने अपना एक पैर उठा कर हवा में हिलाते हुए कहा। “अरे तेरे जैसी हसीना के लिये तो मेरी दुकान में मौजूद हर सैंडल की जोड़ी निसार है!” वो बोला तो मैं फिर हंसते हुए इठला कर बोली, “हाय सच! बेहद शौकीन हूँ मैं ऊँची हील के सैंडलों की! ज़ेवरों से भी ज्यादा… और शौहर की ऊपरी कमाई का बेशतर हिस्सा सैंडल पर खर्च करती हूँ!” उसने भी हंसते हुए कहा, “तू चिंता मत कर! अपनी दुकान समझ और जब चाहे मेरी दुकान पर आकर अपनी पसंद के सैंडल ले जा!”

“सोच लो बलराम जी! लुट जाओगे!” मैंने शरारत से हंसते हुए कहा। नशे में मैं बात-बात पर हंस रही थी। बलराम बोला, “लुटुँगा मैं नहीं बल्कि तेरा शौहर! तेरे शौहर की तो खैर नहीं है आज!” मैंने हल्के से शरारती अंदाज़ में बलराम के सीने पर मार कर कहा, “क्या मतलब है आपका बलराम जी!” वो बोला, “साला हरामी मुझसे झगड़ता है… उसका बदला मैं तेरी मुस्लिम चूत को चोद कर लुँगा! तुझे अपनी रखैल बना लुँगा!”

मैं जोर से हंसी और बोली, “पहले ज़रा शीर-खोरमा तो ले आऊँ… तुम्हें जो ताना मारा था मैंने, तुम्हारी मर्दानगी को पिला ही दुँगी शीर-खोरमा!” मैं बलराम की गोदी से झूमती हुई उठी। “संभल कर जा मुसल्ली राँड! नशे में लुढ़क ना जाना!” मुझे नशे में लहराते देख बलराम हंस कर बोला। मैं भी ज़ोर से खिलखिला कर हंश दी और बोली, “लुढ़क भी गयी तो तुम हो ना मुझे संभालने के लिये!” मैं फिर उसी गाने के टूटे-फूटे से जुमले गुनगुनाती हुई और बीच-बीच में हंसती हुई सीड़ियों की हैंड-रेल पकड़ कर नशे में झूमती लहराती नीचे जाने लगी।

“थोड़ी सी जो पी ली है… चोरी तो… कोई तो संभालो… कहीं हम गिर ना पड़ें…. कैसे ना पियूँ प्यासी ये रात है… कहीं हम गिर ना पड़ें… थोड़ी सी… पी ली…!”

नीचे बेडरूम में झाँक कर देखा तो असलम के खर्राटे अभी भी उरूज पर थे। फिर डगमगाती हुई किचन में जा कर मैंने अबड़-धबड़ किसी तरह शीर-खोरमा कटोरे में डाला क्योंकि नशे में हाथ भी बेतरतीब चल रहे थे। फिर नशे में झूमती लड़खड़ाती हुई ऊपर सीढ़ियों में जाकर बलराम की गोद में जा गिरी और फिर गाँड टिका कर बैठ गयी।

“हाय अल्लाह! ये क्या है?” मैं अचानक चिहुक पड़ी तो वो ज़ोर से हंसा, “तेरी मुस्लिम गाँड और मेरा अनकटा लौड़ा है शबाना राँऽऽड!” मैंने झट से चम्मच भर कर शीर-खोरमा बलराम के मुँह में डाला और बोली, “मेरे हिंदू दिलबर लो पियो अब!” उसे शीर-खोरमा पिलाते हुए बीच-बीच में नशे में लहकते मेरे हाठ से थोड़ा मेरी चूचियों पर भी ढलक जाता था। बलराम ने थोड़ा ही शीर-खोरमा पीया और फिर बोला, “राँड! क्या अब मेरे मुँह में ही डालती रहेगी?” और कहते हुए उसने अपना हिंदू त्रिशूल पैंट से बाहर निकाला और मुझे गोद से उठा कर सीढ़ी पर बिठा दिया। फिर वो कटोरा लेकर मेरे सामने नंगा हिंदू लंड लेकर खड़ा हो गया। उसने चम्मच निकाल कर बाजू में रख दिया और शीर-खुरमे में अपना अनकटा हिंदू लंड डाल दिया। “हाय तौबा ये क्या करा…?” अभी मैं बोल ही रही थी कि बलराम ने अपने लंड को शीर-खुरमे में भिगोया और मेरे मुँह में डाल दिया।

अब तक रमेश के हिंदू लंड से कितनी ही बार उसकी मलाई पी थी मैंने… लेकिन इस तरह लंड से पहली बार इस तरह कुछ पी रही थी थी। मैंने मुस्लिमा अंदाज़ में बलराम के लंड से शीर-खोरमा चूसा और फिर पीते हुए बोली, “शीर-खुरमे से ज़्यादा तो शीर-खुरमे का गोश्त मज़ेदार है!” बलराम ने हंसते हुए फिर से लंड को कटोरे में डाला और मेरे मुँह में दे दिया। “इससे निकलने वाला शीर-खोरमा भी तो मेरे इस शीर-खुरमे से ज्यादा मज़ेदार है!” मैं फिर बोली और वो शीर-खुरमे में अपना लंड डुबो-डुबो कर चुसवाने लगा। उसके अनकटे गोरे हलब्बी लंड का गुलाबी सुपारा भी आलूबुखारे जैसा मोटा था।

फिर बलराम ने अचानक मुझे अपनी मजबूत बाँहों में उठाया और सीढ़ियों से नीचे ले गया। नीचे आकर सीधे मेरे बेडरूम में उसने मुझे सोते हुए शौहर असलम शरीफ के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया। उफ़्फ़ खुदा! मेरा शौहर सामने नशे में धुत्त सो रहा है और मैं खुद भी ईद के दिन शराब के नशे की हालत में सजी धजी एक हिंदू मर्द के साथ चिपकी हुई हूँ जिसने अपना अनकटा मोटा हिंदू लंड पैंट से निकल कर खड़ा किया हुआ है। बलराम ने मेरी कमीज़ को नीचे किया और हाथ डाल कर ब्रा में कैद मेरी गोल खूबसुरत बड़ी बड़ी मुस्लिम चूचियों को बाहर निकाला और फिर मेरी कमीज़ ऊपर उठा कर मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया। मेरी सलवार मेरे सोते हुए शौहर के सामने नीचे गिर गयी और मैंने भी अपने सैंडल वाले पैर उसमें से निकाल कर सलवार को ठोकर से एक तरफ खिसका दिया।

बलराम ने मेरी दोनों मुस्लिम चूचियाँ पकड़ कर आहिस्ता से मेरे कान में कहा, “तूने जो ताना मारा था ना… देख अब तेरे ही घर में तेरे ही कटवे मुल्ले के सामने हमेशा बुऱके में छुपे रहने वाले तेरे जिस्म को मैंने नंगा कर दिया!” फिर मेरे कंधे पर दोनों हाथ रख कर मुझे नीचे बिठा दिया और लंड को मेरे चेहरे के आसपास फेरने लगा। मैंने ज़रा सा सहमते हुए अंदाज़ में एक बार शौहर की तरफ़ देखा और फिर बलराम का हिंदू कड़क गदाधारी लंड अपने मुँह में ले लिया और आहिस्ते-आहिस्ते चूसने लगी। मैं बिना सलवार और कमीज़ में से छोटी सी ब्रा में से झाँकती मुस्लिम चूचियाँ बाहर निकाले हुए… खर्राटे मारकर सो रहे शौहर असलम शरीफ के सामने बलराम का हिंदू लंड चूस रही थी।

वैसे तो शौहर के घर में मौजूदगी के वक्त पहले भी रमेश के साथ छत्त पर छिप कर रात-रात भर चुदवाती थी लेकिन शौहर के बिल्कुल सामने इस तरह बलराम का लंड चूसना जोखिम भरा था। मेरे मन में थोड़ा अंदेशा तो था लेकिन बलराम के हिंदू अनकटे लंड की चाहत और शराब के नशे में मैं बिल्कुल बे-हया होकर बलराम का लण्ड चूस रही थी। मैं कभी शौहर को देखती कभी बलराम के हिंदू लंड को चूसते हुए बलराम की आँखों में देखती। जब भी बलराम की आँखों में देखती तो वो मुझे “राँऽऽड! मुल्लनी, हिजाबी रंडी! छिनाल!” जैसी गालियाँ देता हुआ अपने अज़ीम लंड को मेरे मुस्लिम मुँह में घुसेड़ देता।

बलराम ने फिर मुझे उठा कर खड़ा किया। मैं नशे में झूमती हुई उसकी गर्दन में बाँहें डालें उससे चिपक कर खड़ी हो गयी। उसने मेरी कमीज़ को ऊपर से उतार दिया और फिर पैंटी को पहले तो हाथ से मेरे घुटनों तक नीचे खिसकाया और फिर अपने पैर से मेरी पैंटी को बिल्कुल नीचे कर दिया और फिर ब्रा के हूक खोले बगैर उसने ज़ोर से ब्रा खींच कर हुक तोड़ते हुए निकाल दी। मेरे मुँह से हल्के से निकला, “उफ़्फ़ अल्लाह! मर गयी!” अब मैं बस अपने पैरों में बलराम के तोहफे में दिये लाल रंग के ऊँची हील वाले सैंडल पहने हुए बिल्कुल नंगी थी। बलराम ने मुझे उसे नंगा करने का इशारा किया तो मैंने भी नशे में जूझते हाथों से मैंने उसकी शर्ट के कुछ बटन खोले और कुछ तोड़े और शर्ट उतार दी। फिर नंगी बैठ कर उसकी पैंट भी खोल दी। अब बलराम का हिंदू बदन भी नंगा था। मैं बलराम के हट्टे-कट्टे चौड़े हिंदू सीने से अपने मुस्लिम मम्मों रगड़ने लगी।

मुझे थोड़ी प्यास सी महसूस हुई तो मैंने हाथ बढ़ा कर पास ही रखी वो शराब की बोतल उठा ली। उसमें अभी भी थोड़ी शराब बाकी थी। “साली रंडी! पहले ही नशे में इतनी चूर है अब और कितना पियेगी!” मैंने भी बोतल से होंठ लगा कर एक घूँट पिया और फिर दो-तीन गानों के जुमले मिला कर धीरे से उल्टा-सीधा गुनगुनाने लगी, “नशा शराब में होता तो नाचती बोतल… हमें तो है जवानी का नशा… उसपे फिर नशा है तेरे प्यार का…!” और फिर बोतल मुँह से लगाकर पीने लगी। बलराम ने भी मेरी चूचियाँ चूसनी शुरू कर दीं और कुछ देर उसने मेरी मुस्लिम चूचियों को शौहर असलम के सामने ही चूसा। इस कहानी का मूल शीर्षक “शबाना की चुदाई” है।

“साली पियक्कड़ मुसल्ली राँड! नशे में ज्यादा शायराना हो रही है! बाद में तुझे लंड की कुदरती शराब पिलाउँगा आज!” वो मेरे निप्पल अपने दाँतों से कुतरते हुए धीरे से बोला। मैं उसका इशारा कुछ-कुछ समझ गयी थी लेकिन शक दूर करने के लिये पूछा, “तुम्हारा मतलब पे-पेशाब?” वो बोला, “हाँ साली कुत्तिया!” फिर मेरे हाथ से शराब की बोतल ले कर रख दी। “बहुत बड़े अव्वल दर्जे के पाजी हो तुम! अब क्या पेशाब पिलाओगे मुझे!” मैंने शरारती अंदाज़ में गुस्सा दिखाते हुए कहा! “एक बार चख लेगी तो रोज़-रोज़ पियेगी। तेरे जैसी चुदक्कड़ी मुस्लिम राँडें बहुत शौक से पिती हैं!” वो बोला।

फिर इशारे से मुझे बाहर चलने को कहा। मैं झूमती हुई बाहर जाने लगी थी कि उसने पीछे मेरे चूतड़ों को पकड़ कर बेदर्दी से भींच दिया। मैंने पलट कर इशारे से पूछा, “क्या हुआ?” तो कान के पास आकर बलराम ने कहा, “साली शबाना राँड मुल्लनी! तेरी चूत का भोंसड़ा साली! कटेले की पियक्कड़ बीवी! हाथ में लौड़ा पकड़ और फिर बाहर चल हिजाबी कुत्तिया।” हिंदू बलराम का अनकटा बड़ा लंड पकड़ कर मैं नंगी नशे में झूमती डगमगाती कमरे से बाहर आ गयी। बाहर आते ही बलराम ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया और बाहर से कुँडी लगा दी। मेरा नशा और परवान चढ़ने लगा था और मुझे झूमते देख बलराम मुझे सहारा दे कर बाहर दूसरे बेडरूम में ले जाने लगा! मैं भी हिन्दू बलराम के सहारे डगमगा कर चलती हुई उसके हिंदू लंड को लगातार पकड़े हुई थी और दबा रही थी।

दूसरे बेडरूम में पहुँचते ही उसने ज़ोर से मेरी चूची दबायी और बोला, “साली हिजाबी रंडी! तेरी रंडी चूत का चाँद आज मैं ईद के दिन हिंदू हलब्बी लंड से चोदुँगा!” फिर मुझे गोद में उठा कर बेड पर फेंक दिया और मेरी दोनों टाँगें फैला कर खोल दीं। मेरी मुस्लिम चूत का दरवाजा उसके कड़क हिंदू लंड के लिये बेकरारी से खुल गया। बलराम ने मेरी चूत के छेद पर अपना हिंदू लंड रखा और एक ज़ोर के झटके में तमाम गदाधारी हिंदू त्रिशूल लंड मेरी मुस्लिमा चूत में घुसेड़ दिया। मेरी तो जान ही निकल गयी और मुँह से एक चींख निकल गयी, “आआआईईईई मर गयीऽऽऽऽ! अल्लाऽऽह!” बलराम मेरी चूत के अंदर अपना लंड दाखिल करके रुक गया। मेरी आँखें दर्द के मारे फाट गयी थी और मुँह खुला हुआ था। मैं रमेश के आठ इंच लंबे मूसल जैसे हिंदू लंड से चुदने की आदी थी लेकिन बलराम का लण्ड तो उससे भी कहीं ज्यादा अज़ीम था।

फिर कुछ लम्हों के बाद मेरी चूत उसके घोड़े जैसे लंबे-मोटे लंड की आदी हो गयी तो मैंने बलराम की आँखों में देखा और कहा, “कटेले की मुस्लिम बीवी की छिनाल चूत में आपके हिंदू लंड को मैं सलाम करती हूँ! उफ़्फ़ अल्लाह! मेरे हिंदू खसम! मेरे हिंदू महबूब! बलराम जानू! मेरी कुत्तिया बनी हिजाबी रंडी चूत को चोदो मेरे हिंदू दिलबर!” बलराम ने मेरी मुस्लिम चूचियाँ हाथ में पकड़ीं और मेरे मुस्लिम होंठों पर अपने होंठ रख कर उन्हें चूसते हुए अपने हिंदू अनकटे त्रिशूल जैसे लंड को मेरी मुस्लिमा चूत में चोदने लगा। उसका भुजंग मोटा अनकटा हिंदू लंड मेरी मुस्लिमा चूत के होंठों को चीरते हुए अंदर बाहर हो रहा था। मैंने अपने हाथों से बलराम के चूतड़ दबाये हुए थे और मैं हिंदू बलराम के नीचे बुरी तरह चुद रही थी। बलराम ने मेरे होंठों से होंठ अलग किये और मेरी आँखों में देखा और अपना हिंदू गदा जैसा लंड आधा बाहर निकाला और बोला, “साली रंडी! हरामी… मुल्ले कटवे की हिजाबी बीवी! तेरी मुस्लिम चूत का भोंसड़ा!” ये कहते हुए मेरे होंठों पर फिर से होंठ रख कर ज़ोर के झटके मेरी मुस्लिम चूत में मारने लगा।

मेरी दोनों टाँगें हवा में खुली हुई थीं और लाल सैंडल वाले पैरों के तलवे छत्त की तरफ थे। मेरे गोरे जिस्म पर मानो जैसे बलराम का हिंदू बदन हुकुमत कर रहा था। उसके चूतड़ मेरी मुस्लिम चूत चोदने के वक्त कभी मेरे हाथों में उभरते तो जब कभी वो पूरा हिंदू लंड मेरी चूत में डालता तो सिकुड़ जाते। उधर शौहर असलम के खर्राटों की आवाज़ और इधर हिंदू बलराम और मेरी चूत की चुदाई की आवाज़।

फिर बलराम ने मेरी चूत में मुसलसिल झटके मारते हुए मुझसे कहा, “अब तैयार हो जा रंडी छिनाल! तेरी मुसल्ली चूत में हिंदू लंड का पानी गिरने वाला है!” मैंने भी दोनों टाँगें और ज्यादा खोल लीं और बलराम की आँखों में देखने लगी। वो मेरी आँखों में देख कर मेरी मुस्लिमा चूत में अपने अनकटे लंड से ज़ोर-ज़ोर के झटके मारने लगा। अब बलराम का चेहरा हल्का सा लाल होने लगा और वो कुछ गुस्सैले अंदाज़ में मेरी आँखों में देखने लगा। मैंने उसकी आँखों में देखते हुए अपनी मुस्लिमा चूत को उससे चिपकाने की कोशिश की। “राँऽऽऽड मुल्लानीऽऽऽ साऽऽली कटीऽऽली छीनाऽऽल! मुल्ले की राँऽऽऽड बीवी! तेरी मुस्लिमा चूत का मुस्लिम भोंसड़ाऽऽऽ शबानाऽऽ मुस्लिमाऽऽ ले साऽऽली। ले अपनी छिनाल चूत में मेरा पानी! भोंसड़ी की!” कहता हुआ झटकों से मेरी हिजाबी मुसिल्मा चूत में अपना पानी डालने लगा। उफ़्फ़ उसके अनकटे लण्ड का सारा पानी मेरी मुस्लिम चूत में था और एक आखिरी झटके के साथ वो मेरी मुस्लिम चूचियाँ अपने सीने से दबाते हुए मेरे मुस्लिम जिस्म पर लेट गया। फिर कुछ देर मेरी चूत में अपने अनकटे लंड को आराम देकर उसने बाहर निकाला और मेरे ऊपर ही लेटा रहा। मेरे सुर्ख गुलाबी होंठों में अपने मर्दाना होंठ रख कर चूसने लगा। मेरा पूरा गोरा पाक मुस्लिमा जिस्म बलराम के हिंदू मर्दाना बदन के नीचे दबा हुआ था।

फिर उसने बैठ कर अपना हिंदू लंड मेरे चेहरे के सामने ला कर मेरे होंठों पर रख दिया। मैंने शरारत से उसकी आँखों में देखते हुए अपने होंठ खोल कर उसका अनकटा लंड जो कि मेरी चूत और उसके खुद के पानी से सना हुआ था, अपने मुँह में ले लिया। उसके मर्दाना हिंदू लंड में अभी भी काफी सख्ती बरकरार थी। मुझे अपनी चूत और उसके लण्ड के पानी का मिलाजुला स्वाद बहुत ही लज़ीज़ लग रहा था। मेरे चूसने से उसका लण्ड फिर फूलने लगा और उसने झटके मारते हुए मेरा मुँह चोदना शुरू कर दिया।

अचानक उसने अपना लण्ड मेरे मुँह से बाहर निकाला। उसका हिंदू अज़ीम लंड फिर से पूरा सख्त हो कर फूल गया था। “चल साली मुसल्ली राँड! घोड़ी बन जा! अब तेरी मुस्लिमा नवाबी गाँड की धज्जियाँ उड़ाउँगा!” उसने कहा। रमेश अक्सर अपने आठ इंच लंबे मोटे लंड से मेरी नवाबी गाँड मारता था और मुझे भी बेहद मज़ा आता था लेकिन बलराम का लंड तो उससे कहीं ज्यादा लम्बा मोटा था। इसलिये मुझे थोड़ी हिचकिचाहट तो हुई लेकिन इतना अज़ीम अनकटा लण्ड अपनी गाँड में लेने के ख्याल से सनसनी भी महसुस होने लगी। मैंने बलराम को देखते हुए कहा, “नहीं! नहीं! तुम्हारा ये गदाधारी लण्ड-ए-अज़ीम तो मेरी गाँड फाड़ डालेगा!” लेकिन मेरी आवाज़ मुस्तकिल नहीं थी और मेरी आँखों और चेहरे के जज़्बातों से भी बलराम समझ गया कि मैं सिर्फ नखरा कर रही हूँ।

“मुझे पता है मुसल्ली राँड! तेरी मोटी गाँड में भी बहुत खुजली है! एक बार मेरा लंड अपनी छिनाल मुस्लिमा नवाबी गाँड में ले लेगी तो हर रोज़ गाँड मरवाने के लिये भीख माँगेगी!” वो बोला और मुझे बिस्तर से उठाकर ज़मीन पर खड़ा किया और मुझे बिस्तर पर झुकने को कहा। “चल मुसल्ली छिनाल! खड़ी-खड़ी ही बिस्तर पर हाथ रख कर झुक जा!” जैसे ही मैं बिस्तर पर झुकी, बलराम ने मेरे चूतड़ों पर दो-तीन थप्पड़ मारे और फिर मेरी गाँड के छेद पर अपने लंड का गदा जैसा सुपाड़ा टिका दिया और फिर धीरे-धीरे मेरी गाँड में घुसेड़ने लगा।

“आआईईईईऽऽऽ! अल्लाहऽऽऽऽ मर गयी!!!” मैं दर्द बर्दाश्त करते हुए चिल्लायी। उसने बिना तवज्जो दिये मेरी गाँड में अपना खंबे जैसा हिंदू मर्दाना लंड घुसेड़ना ज़ारी रखा। “हायऽऽ अल्लाहऽऽऽ! नहींऽऽऽ अल्लाह!” मेरी आवाज़ दर्द और वासना दोनों मौजूद थीं। दर्द भी इस कदर था कि मैं खुद को छटपटाने से रोक नहीं पा रही थी और तड़प कर ज़ोर-ज़ोर से अपने चूतड़ हिलाने लगी। बलराम ने फिर मेरे चूतड़ों पर थप्पड़ मारे और फिर झुक कर मेरे छटपटाते जिस्म को अपनी मजबूत बाँह में कस कर पकड़ लिया और अपना बाकी का हिंदू ना-कटा लंड मेरी गाँड में ढकेलने लगा।

धीरे-धीरे मेरा दर्द काफूर होने लगा और मुझे और मज़ा आने लगा। मेरी गाँड बलराम के हिंदू लण्ड पर चिपक कर कस गयी और मैं उसके नीचे दबी हुई उसका लंड अपनी गाँड में और अंदर लेने की कोशिश में अपने चूतड़ उछालने लगी। कुछ ही लम्हों में उसका तमाम लण्ड मेरी गाँड में दाखिल हो गया। अब बलराम ज़ोर-ज़ोर से झटके मारने लगा और उसके मर्दाना पुट्ठे मेरे चूतड़ों पर टकराने लगे। “चोदो मेरे हिंदू राजा! मेरी मुस्लिमा नवाबी गाँड में अपना शाही लण्ड ज़ोर-ज़ोर से चोदो!” मैं मस्ती में बोलते हुए अपने चूतड़ हिलाने लगी। बलराम अब इतनी ज़ोर-ज़ोर से झटके मार कर अपना लण्ड मेरी छिनाल कसी हुई नवाबी गाँड में पेल रहा था कि मैं ऊँची हील के सैंडल में अपने पैरों पर खड़ी नहीं रह सकी और अपने पैर और टाँगें ज़मीन से हवा में उठा कर बिस्तर पर पेट के बल सपाट झुक गयी। अब मेरी चूत भी नीचे से बिस्तर पर रगड़ रही थी। करीब दस मिनट तक बलराम ने मेरी गाँड अपने हिंदू अज़ीम लंड से मारी और मेरी चूत ने तीन बार पानी छोड़ा। फिर बलराम भी मेरी कमर पर झुका और तमाम हिंदू लण्ड मेरी गाँड में ठाँस कर रुक गया और फिर मेरी गाँड अपने पानी से भर दी।

हम दोनों कुछ देर इसी तरह पड़े हाँफते रहे और पिर धीरे-धीरे बलराम ने अपना हिंदू अनकटा लंड मेरी मुसलिमा गाँड में से बाहर निकाला। फिर वो खड़ा हुआ तो मैं भी पलट कर उसकी आँखों में देखते हुए मुस्कुराने लगी।

मैं बैठ कर अपने खुले हुए बाल बाँधने लगी तो बलराम झुक कर मेरी मुस्लिम चूचियाँ पकड़ कर आहिस्ता से दबाने लगा। उसका लण्ड अब ढीला पड़ गया था लेकिन फिर भी छः-सात इंच का था। मेरे शौहर असलम शरीफ की लुल्ली तो सख्त होकर भी मुश्किल से तीन-चार इंच की होती थी। बलराम का हिंदू लंड अपने पानी से सना हुआ चिपचिपा रहा था। मैंने उसे पकड़ अपने मुँह में भर लिया और चूसते हुए साफ करने लगी। बलराम जी के हिंदू लंड को चूसते हुए मुझे सिर्फ लंड के पानी का ही लज़ीज़ स्वाद नहीं बल्कि अपनी गाँड का भी हल्का-हल्का सा जाना-पहचाना ज़ायका आ रहा था। इससे पहले भी कईं बार मैंने रमेश से गाँड मरवाने के बाद उसके लण्ड से ये मज़ेदार ज़ायका लिया था।

इतने में बलराम ने कहा, “शबाना बेगम! आओ तुम्हें अपने लंड की शराब पिलता हूँ!”

“तुम मुझे अपना पेशाब पिलाये बगैर मानोगे नहीं!” मैं मुस्कुराते हुए अदा से बोली। “एक बार पी कर देख फिर तू खुद ही पेशाब पिये बगैर मानेगी नहीं!” उसने हंसते हुए जवाब दिया। फिर उसने मुझे बिस्तर से उतार कर नीचे ज़मीन पर बैठने को कहा तो मैं उसकी टाँगों के बीच में घुटने मोड़ कर बैठ गयी। अब तो मैं भी उसका पेशाब चखने के लिये मुतजस्सिस थी और गर्दन उठा कर मैं बलराम की आँखों में झाँकते हुए अदा से अपने होंठों पर जीभ फिराने लगी और बोली, “अब जल्दी से पिला दो अपने लण्ड की शराब! मैं भी देखूँ कितना नशा है इसमें!”

उसने मेरे मुलायम सुर्ख होंठों पर अपना लंड टिकाया तो मैंने होंठ खोल कर उसके लंड का आधा सुपाड़ा मुँह में ले लिया। एक लम्हे बाद ही बलराम आहिस्ता-आहिस्ता मेरे मुँह में पेशाब करने लगा। जब मेरा मुँह उसके गरम पेशाब से भर गया तो उसने अपना लंड मेरे होंठों से पीछे हटा लिया। मैंने मुँह में भरे फेशब को धीरे-धीरे मुँह में ही घुमाया और फिर आहिस्ता से अपने हलक में उतार दिया। मेरे मुँह में एक साथ कितनी ही तरह के ज़ायके एक-एक करके फूट पड़े। नमकीन, कसैला, थोड़ी सी खट्टास, थोड़ी सी कड़वाहट और फिर हल्की सी मिठास। उफ्फ अल्लाह! क्या कहुँ! इतने सारे ज़ायकों का गुलदस्ता था। फिर बलराम ने इसी तरह मेरे मुँह में सात-आठ बार अपना पेशाब भरा और हर बार मैं मुँह में पेशाब घुमा-घुमा कर पीते हुए आँखें बंद करके एक साथ इतने सारे ज़ायकों की लज़्ज़त लेने लगी। बलराम के पेशाब का आखिरी कतरा पीने के बाद मैं अपने होंठों पर जीभ फिराते हुए बलराम की आँखों में देखते हुए बोली, “शुक्रिया मेरे हिंदू सरताज़! मुझे पेशाब के मज़ेदार ज़ायके से वाकिफ कराने के लिये! वाकय में बेहद लज़िज़ और नशीली शराब है ये!”

उसके बाद हम नंगे ही उस बेडरूम में गये जहाँ मेरा शौहर असलम शरीफ खर्राटे मार कर नशे में धुत्त सो रहा था। क्योंकि हमारे कपड़े उसी कमरे में थे। मेरा नशा इतनी देर में ज़रा भी कम नहीं हुआ था और मैं बलराम के मर्दाना हिंदू जिस्म के सहारे ही लड़खड़ाती हुई चल रही थी। कमरे में आ कर बलराम अपने कपड़े पहनने लगा और मैं नशे में झूमती हुई नंगी ही बिस्तर पर बैठ कर उसे देखने लगी। शौहर असलम मेरे पास ही लेटा हुआ खर्राटे मार रहा था । अपने कपड़े पहनते हुए बलराम बोला, “ज़रा अपने शौहर का लंड कितना बड़ा है मुझे भी बता!” बलराम की बात सुनकर मैं हंस पड़ी और शौहर असलम के पास खिसक कर मैं आहिस्ते से शौहर का पजामा खोलने लगी। उसने अंदर चड्डी नहीं पहनी थी तो मैंने आहिस्ता से पजामा खींच कर नीचे कर दिया और उसकी लुल्ली की तरफ इशारे करके हंसने लगी। बलराम ने देखा तो वो भी ज़ोर से हंसने लगा। इस कहानी का मूल शीर्षक “शबाना की चुदाई” है।

शौहर असलम की लुल्ली छोटी होने की वजह से ठीक से नज़र भी नहीं आ रही थी। मैंने हंसते हुए बलराम को इशारे से अपनी दो उंगलियाँ फैला कर बताया कि जब असलम की लुल्ली खड़ी होती है तो तीन इंच की होती है। बलराम ने पास आकर अपने हिंदू बड़े कड़क मूसल जैसे लंड पर मेरा हाथ रखा और मसलते हुए बड़ा करने लगा और मेरी आँखों में देखने लगा। उसकी हिंदू अदायें मेरी मुस्लिम चूत को शर्मिंदा कर रही थी लेकिन मैं अपनी चूत और गाँड में उसके हिंदू लंड का पानी लेकर चुदक्कड़ हो चुकी थी।

उसने अपने सारे कपड़े पहन लिये और मैं नंगी ही नशे झूमती उसके साथ फिर से बाहर हॉल में आ गयी। हम दोनों अभी भी मेरे शौहर का मज़ाक उड़ाते हुए हंस रहे थे। बाहर हॉल में आ कर फिर हम दोनों ने कुछ देर किस किया और मैंने उसकी पैंट की चेन खोलकर अपना एक हाथ अंदर डाल कर उसका लंड पकड़ लिया। मेरे होंठों को चूमते हुए बलराम बोला, “लगता है शबाना बेगम का अभी भी मन नहीं भरा!”

“ऊँहुँ!” मैंने ना में सिर हिलाया और फिर बोली, “वादा करो मुझे हर रोज़ इसी तरह चोदोगे!” वो हंसने लगा और पिर बोला, “तेरी मुस्लिमा चूत और गाँड कि तो हर रोज़ रात को छत्त पर अपने हिंदू लण्ड से चुदाई करुँगा मुसल्ली राँड!” फिर उसकी पैंट में आगे से हाथ डाले हुए मैं उसका हिंदू लंड पकड़ कर दरवाजे तक ले जाकर अलविदा कहा।

दूसरे दिन सुबह-सुबह मैं रिश्तेदारों से मिलने जाने के लिये बुऱका पहने शौहर असलम के साथ निकली। बलराम भी बाहर खड़ा सिगरेट पी रहा था। असलम मिय़ाँ अपनी पुरानी गाड़ी स्टार्ट करने लगे और मैं खड़ी होकर बलराम से इशारे लड़ाने लगी। कभी वो किस करने का इशारा करता कभी असलम की छोटी लुल्ली पर हंसकर हाथ से बताता। मैं भी बाहर खड़ी होकर कभी अपनी मुस्लिम चूची उभार कर दिखाती और कभी हवा में किस करती कभी अपना अंगुठा मुँह में डाल कर लंड चूसने का इशारा करती। फिर गाड़ी स्टार्ट हुई तो मैं पीछे बैठ कर जाते हुए बलराम को अपना हिजाब हटा कर किस करती हुई चली गयी।

उस दिन से मेरी ज़िंदगी ही बदल गयी। शुरू-शुरू में मैंने रमेश और बलराम दोनों को एक -दूसरे के बारे में नहीं बताया। मुझे डर था कि उन दोनों में से कहीं कोई नाराज़ ना हो जाये और मैं उन दोनों में से किसी को भी खोना नहीं चाहती थी। मैंने रमेश से बहाना बना दिया कि मेरे शौहर को हमारे तल्लुकात के बारे में शक हो गया है और इसलिये मैं उससे रात को छत्त पर नहीं मिल पाउँगी। दिन में वो जब चाहे मुझे चोद सकता है। उधर बलराम से मैं रात को ही मिल सकती थी क्योंकि दिनभर वो अपने शोरूम में होता था। अब मैं दिन में शौहर के जाने के बद रमेश के हिंदू लंड की रखैल बन कर चुदती। फिर रात को असलम मियाँ के नशे में चूर हो जाने के बाद मैं भी शराब पी कर छत्त पर बलराम के मूसल हिंदू से चुदने पहुँच जाती और आधी रात के बाद तक उसके साथ चुदवा कर नशे में झूमती हुई वापस नीचे आती।

हर रोज़ सुबह-सुबह मैं उसका ताज़ा पेशाब पीने छत्त पर पहुँच जाती। उस वक्त शौहर असलम मियाँ नीचे तैयार हो रहे होते थे। मुझे पेशाब पीने की इतनी लत्त लग गयी कि जब मैं रमेश के साथ होती तो उसका पेशाब भी पीने लगी और यहाँ तक कि कुछ ही दिनों में अपना खुद का पेशाब भी पीना शुरू कर दिया। अब तो आलम ये है कि जब कभी भी मुझे मूतना होता है तो मैं बाथरूम जाने की बजाय एक बड़े गिलास में ही पेशाब करती हूँ और फिर मज़े ले-ले कर पीती हूँ।

बलराम मुझे बहुत ही ज़लील तरीके से रंडी की तरह चोदता था। मुझसे हमेशा नयी-नयी ज़लील और ज़ोखिम भरी हरकतें करवा कर मुझे गरम करता था और मुझे भी इसमें बेहद मज़ा आता था और मैं भी उसकी हर फरमाइश पुरी रज़ामंदी से पूरी करती थी। बलराम हर हफ्ते मुझे नये-नये फैशन की ऊँची हील वाली सैंडल की एक-दो जोड़ी तोहफे में देता था। एक बार उसने बहुत ही कीमती और खूबसुरत ऊँची हील के सैंडलों की जोड़ी दिखाय़ी और बोला कि अगर मुझे चाहिये तो उसके शो-रूम पर आकर लेने होंगे लेकिन मुझे सिर्फ बुऱका पहन कर आना होगा। पैरों में सैंडलों के आलावा बुऱके के नीचे कुछ भी पहनने से मना कर दिया। अगले ही दिन मैंने सिर्फ बुऱका और ऊँची हील के सैंडल पहने और बिल्कुल नंगी रिक्शा में बैठ कर बाज़ार पहुँच गयी। फिर वैसे ही भीड़भाड़ वाले बज़ार में भी करीब आधा किलोमितर पैदल चल कर बलराम के शो-रूम पर पहुँची।

ऐसे ही करीब चार महीने निकल गये। इस दौरान मैंने चुदक्कड़पन की तमाम हदें पार कर दीं। रात को तो मैं अब असलम मियाँ की शराब में नींद की गोलियाँ मिला देती ताकि सुबह तक खर्राटे मार कर सोता रहे। मैं अब छत्त से होकर बलराम के घर में उसके बिस्तर में पुरी-पूरी रात गुज़रने लगी। कईं बार बलराम रात को हमरे घर आ जाता और हम दोनों शौहर असलम मियाँ की मौजूदगी में रात भर ऐय्याशी करते। फिर एक दिन रमेश को मेरे और बलराम के रिश्ते के बारे में पता चल गया। पहले तो थोड़ा नाराज़ हुआ पर फिर मैंने प्यार से उसे मना लिया और बलराम को भी रमेश से अपने ताल्लुकतों के बारे में बता दिया। फिर तो दोनों हिंदू मर्द मिलकर अक्सर रात-रात भर मुझे चोदने लगे। कभी छत्त पर तो कभी बलराम के घर में और कभी मेरे ही घर में। दोनों एक साथ मेरी गाँड और चूत में अपने-अपने हिंदू हलब्बी मर्दना लण्ड डाल कर चोदते तो मैं मस्ती में चींखें मार-मार कर दोहरी चुदाई का मज़े लेती।

ये सिलसिला करीब एक साल तक चला। फिर एक दिन अचानक मेरी ज़िंदगी में फिर से अंधेरा छा गया। मेरे शौहर असलम शरीफ का तबादला दूसरे शहर में हो गया। जिस्मनी तस्कीन और अपनी चूत की प्यास बुझाने के लिये मैं फिर बैंगन और मोमबत्ती जैसी बेजान चीज़ों की मातहत हो गयी। लेकिन अब इस तरह मेरी प्यास नहीं बुझती थी। मुझे तो रमेश और बलराम के लंबे मोटे हिंदू हलब्बी मर्दाना लौड़ों से दिन रात चुदने और दोहरी चुदाई की इतनी आदत हो गयी थी कि मैं कितनी भी कोशिश करती और घंटों अपनी चूत और गाँड में मोटी-मोटी मोमबत्तियाँ और दूसरी बेजान चीज़ें घुसेड़-घुसेड़ कर चोदती लेकिन करार नहीं मिलता। इसी दौरान हमारे घर से थोड़ी दूर एक मदरसे में उस्तानी की ज़रूरत थी तो मैंने दरख्वास्त दे दी और मेरा इन्तखाब भी हो गया। अब मैं सुबह दस बजे से दोपहर में दो बजे तक मदरसे में छोटे बच्चों को पढ़ाने लगी। इस वजह से अब कम से कम आधा दिन तो अब मैं मसरूफ रहने लगी।

फिर एक महीने बाद मेरे शौहर किसी काम से एक हफ्ते के लिए दफ्तर के काम से बाहर गये। मैं भी दोपहर में मदरसे से लौटते हुए बुऱका पहने अपनी प्यासी मुस्लिम चूत लेकर शॉपिंग के लिये बाज़ार गयी। अभी मैं मदरसे से निकल कर चलते हुए बीस मिनट का रास्ता ही तय कर पायी थी कि सामने से एक औरत बुऱका पहने मेरी ही तरह ऊँची हील की सैंडल में शोख अंदाज़ में आ रही थी। उसने भी चेहरे से नकाब हटा रखा था। जब वो पास आयी तो मैंने पहचाना के ये तो नाज़िया है। “हाय अल्लाह! नाज़िया तू!” मैंने खुशी से कहा। “तू शबाना… शब्बो तू?” नाज़िया भी हंसते हुए मुझसे लिपट गयी। हम दोनों खुशी से गले मिले और बातें करने लगे कि अचानक एक बाइक तेज़ी से आयी। हम लोग जल्दी से एक तरफ़ हट गये और उस लड़के ने जल्दी से अपनी बाइक दूसरी तरफ़ मोड़ ली और गुस्से से जाते-जाते बोला, “रंडियाँ साली! देख कर चलो सालियों!” और कहता हुआ चला गया। उसकी गालियाँ सुनकर मुझे रमेश और बलराम की याद आ गयी और जिस्म में एक सनसनी फैल गयी। अपने जज़्बात छिपाने के लिये मैंने नज़रें झुका लीं। फिर नाज़िया की तरफ़ देखा तो उसने शरारत भरे अंदाज़ में कहा, “लगता है ये हज़रत हिंदू लंड वाले हैं!” और कहकर ज़ोर से हंसते हुए बोली, “चल छोड़ ना शब्बो! बता कि यहाँ कैसे आयी?” मुझे हैरत हुई कि नाज़िया जो कॉलेज की सबसे अव्वल दर्जे की तालिबा थी, उसके मुँह से हिंदू लंड सुनकर मेरी आँखें खुली रह गयीं। मैंने कहा, “बेहया कहीं की! चुप कर!”

फिर वो मेरा हाथ पकड़ कर अपने घर ले गयी। फिर हम दोनों ने अपने बुऱके उतारे। जैसे ही नाज़िया ने अपना बुऱका उतारा तो मेरे मुँह से निकला, “सुभान अल्लाह नाज़िया!” उसका जिस्म बहुत गदराया हुआ था। गहरे गले की कसी हुई कमीज़ से उसके मुस्लिमा मम्मे उभरे हुए नज़र आ रहे थे और उसके गोल-गोल चूतड़ भी ऊँची हील के सैंडल की वजह से उभरे हुए थे। उसने मेरी चूचियों को देखते हुए कहा, “सुभान अल्लाह क्या? खुद को देख माशा अल्लाह है माशा अल्लाह!” इतने में किसी ने दरवाजा खटखटाया। नाज़िया ने दरवाजा खोला और एक शख्स कुर्ता पजामा पहने अंदर आया। “ये कौन मोहतरमा हैं?” वो बोला तो नाज़िया ने कहा, “जी आपकी साली समझें! ये मेरी कॉलेज की सहेली है शबाना इज़्ज़त शरीफ!” वो अंदर चला गया और नाज़िया ने शरारत से कहा, “ये दाढ़ी वाला बंदर ही मिला था मुझे शादी करने के लिये!” मैंने नाज़िया की बाजू पर मारते हुए कहा, “चुप कर!” फिर थोड़ी देर बाद नाज़िया का शौहर बाहर निकल कर जाने लगा और बोला, “आज काम है… शायद लौटते वक्त देर हो जायेगी!” और कहते हुए चला गया।

नाज़िया ने मुझे बिठया और पूछा, “बता क्या पियेगी?” “कुछ भी चलेगा!” मैंने कहा तो वो चहकते हुए बोली, “कुछ भी?” मैंने कहा, “हाँ कुछ भी



loading...

और कहानिया

loading...



www.india behos ki goli dekar xxx.comjabardast hard bfxxx xxx xxxदासी ne raja se xxx vidosxxx bhai bahanxxx nonbhej lambi khaniromanti xxx vidhvas hdfree hindi me likhi xxx kahaniyanmavashi sas ki chudai ki kahaniwww chikne chamele ki kutte ke sath chudai story com.force gangbang hindi grop sex storeswww.chodkam/bhaibehan.comनयी नाईट डिअर की चुदाई की कहानीpudina nehi sexy video HDबहन की च**** की कहानी और वीडियोbhabi nanab saxy hinadi kahanibaris.ki.xxx.kahanimaa.bati.ko.gift.rad.bra.panti.uncle.ka.hotal.me.sex.storyवर्षा भाभी को चोदते हुए एमएमएस बनायाwww xxx सुहगरात चुदई com hd 2018Chut land ki kahaniberaham chodai chachi ki khaniantravasna paiso ke liye habsi lore se chudaiX stort risto me chudai gangbangghar ki chut.bhai bahan ki sex khet me hindi kahanibhurkhe me seduce ki chudi storysixe bfdo dost se chut xxx pati kahaniantervasna gangbagsadi me mama ki beti ki pahli chudai kahani hindi mehin xxx stoबेहोश करके बुआ को चोदाsex kahani aanti.comxxx com hd वाईट वाट फुल hd तेल वालाAntrvssna m free hind maa petikit hindi kahani xxx2018 ki new hindi sax kahani anti ki with photodidi or bhabhe or mummy ki malish hot kahaniya KUARI CUT CUDEI AUDIO KAHANI KAMUKTA COM HINDIजुजी दलो बुर में आंटी बोली हिंदी कहानीwww.antervasnasexstore.comdivar bhabhai rumasiदिदी के ससुराल में दीदी को नंगा करके चोदा हिंदी सेक्स स्टोरीvidhavaki chdai kikahanidesi baap bete ne maa beti ko bhath ru me xnxx hindi stori kahaniDeshi.sexshtoris.in.hindexxx seal pack hindi story kahanixxx a bf फोटो काहानीSali k sath sex khaniभाभी की चूदाईसेकसी लांडxxx khani did sanनई नवेली चची को छोड़ा हिंदी कहानी क्सक्सक्सXxx kahaniऑटो ज़ सेक्सी िण्डन हॉट भाभी नईमाँ का बोसरा xxx Www,bas,ma,sax,ki,kahani,combhanji ne mama se khetme chudaikarvai dehatiAsha didi गाँड मारी कहानी sexyगाड मे लंड सेक्सी काहानीAnjan aged aunty train me hot sex kahanisaxxy khaniyahinfisexdesixxx hot new gay sexy kahaniya muje ankal ne codamara lada kamvasna karn ke lee lada ma cota ota haसकुल के चपरासी सेक्स कहानीwwwchudai kahani .comxxx hot muslim girl ko choda dard se chillayiमराठी बहन को दोस्तोने चोदा सिक्स स्टोरीhindisxestroymummy ko apni dulhan banaya desibees sex storiesX deshu chudai bhabhi nighty vali photo ke sath storyचुदाईbarmasti. sexx नंदोई का ल** हिंदी सेक्सी कहानीघर टटी खाने की कहानियांcrazy bhain bhai grup sax kahanigandu ki kahanibibi ki talaksuda saheli sexstoriWww.sex.slhj.chachiki.chudai.xxx photo hd kahani hindimastramsexkahanerat ko choda chudai kahaniSex khani rel